पंचाशत्तम (50) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 12-21 का हिन्दी अनुवाद
यह कभी सम्भव नहीं है कि कुन्ती नन्दन अर्जुन भय के कारण देवता, गन्धर्व, असुर तथा राक्षसों से भी युद्ध न करें। जैसे गरुड़ जिस जिस वृक्ष पर पैर रखते हैं, अपने वेग से उसे गिराकर चले जाते हैं, उसी प्रकार अर्जुन अत्यन्त क्रोध में भरकर संग्राम भूमि में जिस जिस महारथी पर आक्रमण करेंगे, उसे नष्ट करके ही आगे बढ़ेंगे। कर्ण! अर्जुन पराक्रम में तुमसे बहुत बढ़े - चढ़े हैं, धनुष चलाने में तो वे इन्द्रराज कं तुल्य हैं और युद्ध की कला में साक्षात् वसुदेव नन्दन कृष्ण के समान हैं; ऐसे कुन्ती पुत्र की कौन प्रशंसा नहीं करेगा ?। जो देवताओं के साथ देवोचित्त ढेग से और मनुष्यों के साथ्सा मानवोचित प्रणाली से युद्ध करते हैं और प्रत्येक अस्त्र को उसके विरोधी अस्त्र ,ारा नष्ट करते हैं, उन कुन्ती नन्दन धनुजय की समानता करने वाला कौन पुरुष है ?। धर्मज्ञ पुरुष ऐसा मानते हैं कि गुरु को पुत्र के बाद शिष्य ही प्रिय होता है, इस कारण से भी पाण्डु नन्दन अर्जुन आचार्य द्रोण को प्रिय हैं ( अतः वे उनकी प्रशंसा क्यों न करें ?)। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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