महाभारत विराट पर्व अध्याय 44 श्लोक 15-25

चतुश्चत्वारिंश (44) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: चतुश्चत्वारिंश अध्याय: श्लोक 15-25 का हिन्दी अनुवाद


संग्राम में युद्ध करते सुय मेरे रथ में सोने के बख्तर से सजे हुए श्वेत रंग के घोड़े जोते जाते हैं, इसलिये मेरा नाम ‘श्वेतवाहन’ हुआ है तथा हिमालय के शिखर पर उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में दिन के समय मेरा जन्म हुआ था; इसलिये मुझे ‘फााल्गुन’ कहते हैं। युद्ध करते समय मैं किसी प्रकार भी बीभत्स ( घृणित ) कर्म नहीं करता; इसलिये देवताओं और मनुष्यों में मेरी ‘बीभत्सु’ नाम से प्रसिद्धि हुई है। मेरा बाँया और दाहिना दोनों हाथ गाण्डीव धनुष की डोरी खींचने में समथ हैं, इसलिये देवताओं और मनुष्यों में लोग मुझे ‘सव्यसाची’ समझते हैं। ( अर्जुन शब्द के तीन अर्थ हैं - वर्ण या दीप्ति, ऋतुजा सा समता, धवल या शुद्ध। ) चारों ओर समुद्र पर्यन्त पृथ्वी पर मेरे जैसी दीप्ति दुर्लभ है। मैं सबके प्रति समभाव रखता हूँ और शुद्ध कर्म करता हूँ। इसी कारण विज्ञ पुरुष मुझे ‘अर्जुन’ के नाम से जानते हैं। मुझे पकड़ना या तिरस्कृत करना बहुत कठिन है। मैं इन्द्र का पुत्र एवं शत्रुदमन विजयी वीर हूँ, इसलिये देवताओं और मनुष्यों में ‘जिष्णु’ नाम से मेरी ख्याति हुई है। ( कृष्ण शब्द का अर्थ है - श्यामवर्ण तथा मन को आकर्षित करने वाला ) मेरे यारीर का रंग कृष्ण्र-गौर है तथा बाल्यावस्था में चित्ताकर्षक होने के कारण मैं पिताजी को बहुत प्रिय था। अतः मेरे पिता ने ही मेरा दसवाँ नाम ‘कृष्ण) रक्खा था।

वैशम्पायनजी कहते हैं - जनमेजय! तदनन्तर विराट पुत्र उत्तर ने निकट जाकर अर्जुन के चरणों में प्रणाम किया और बोला - ‘मेरा नाम भूमिंजय तथा उत्तर भी है। ‘कुन्ती नन्दन! मेरा सौभाग्य है कि मुझे आपका दर्शन मिला। धनुजय! आपका स्वागत है। महाबाहो! आपके नेत्र लाल हैं और बाहुबल गजराज के शुण्ड को लज्जित कर रहे हैं। ‘मैंने अज्ञानवश आपसे जो अनुचित बात कह दी हो, उसे आप क्षमा करेंगे। पूर्व काल में आपने अत्यन्त दुष्कर और अद्भुत कर्म किये हैं, इसलिये आपका संरक्षण पाकर मेरा भय दूर हो गया है और आपके प्रति मेरा प्रेम बहुत बढ़ गया है। ‘पार्थ! मैं आपका दास होऊँगा। आप मेरी ओर कृपापूर्ण दृष्टि से देखें। मैंने आपके सारथि का कार्य करने के लिये पहले जो प्रतिज्ञा की थी, उसके लिये अब मेरा मन स्वस्थ हो गया है। मेरा महान् सौभाग्य प्रकट हुआ है ( जिससे मुझे आपकी सेवा का यह शुभ अवसर प्राप्त हो रहा है )’।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में उत्तर गोग्रह के अवसर पर अर्जुन परिचय सम्बन्धी चैवालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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