महाभारत विराट पर्व अध्याय 28 श्लोक 18-33

अष्टाविंश (28) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: अष्टाविंश अध्याय: श्लोक 18-33 का हिन्दी अनुवाद


‘उस देश या जनपद में प्रचुर रूप से वेदध्वनि होती होगी, यज्ञों में पूर्णाहुतियाँ दी जाती होंगी और बड़ी-बड़ी दक्षिणाओं वाले बहुत-से यज्ञ हो रहे होंगे। ‘वहाँ मेघ सदा ठीक-ठीक वर्षा करता होगा, इसमें संशय नहीं है। वहाँ की भूमि पर खेती लहलहाती होगी और वहाँ निवास करने वाली प्रजा सर्वथा निर्भय होगी। ‘वहाँ गुणयुक्त धन्य, सरस फल, सुगन्धयुक्त माला और मांगलिक याब्दों से युक्त वाणी सुलभ होगी। ‘वहाँ जिसका स्पर्श सुखदायक हो, ऐसा शीतल एवं मन्द वायु चलती होगी। धर्म और ब्रह्म के स्वरूप का विचार पाखण्डशून्य होगा। जहाँ युधिष्ठिर होंगे, वहाँ भय का प्रवेश नहीं हो सकता। ‘उस जनपद में गौओं की अधिकता होगी और वे गौएँ कृश या दुर्बल न होकर खूब हृष्ट-पुष्ट होंगी। उनके दूध, दही और घी भी बड़े स्वादिष्ट तथा हितकारी होंगे।

‘जिस देश में राजा युधिष्ठिर होंगे, वहाँ गुणकारी पेय और सरस भोज्य पदार्थ सुलभ होंगे। ‘जहाँ राजा युधिष्ठिर होंगे, वहाँ रस, स्पर्श, गन्ध और शब्द - सभी विषय गुणकारी होंगे और मन को प्रसनन करने वाले दृश्य देखने को मिलेंगे। ‘इस तेरहवें वर्ष में राजा युधिष्ठिर जहाँ कहीं भी होंगे, वहाँ के समस्त द्विज (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) अपने-अपने धर्मों का पालन करते होंगे और धर्म भी अपने गुण तथा प्रभाव से सम्पन्न होंगे। तात! पाण्डवों से संयुक्त देश में ये सब विशेषताएँ होंगी। वहाँ के लोग प्रसन्न, संतुष्ट, पवित्र और विकारशून्य होंगे। ‘देवता और अतिथियों की पूजा में सबका सर्वतोभावेन अनुराग होगा। सभी लोग दान को प्रिय मानेंगे, सब में भारी उत्साह होगा और सभी अपने-अपने धर्म के पालन में तत्पर होंगे। ‘जहाँ राजा युधिष्ठिर होंगे, वहाँ के लोग अशुभ को छोड़कर शुभ के अभिलाषी होंगे। यज्ञों का अनुष्ठान उनके लिये अभीष्ट कार्य होगा और वे श्रेष्ठ व्रतों को धारण करते होंगे।

‘तात! जहाँ राजा युधिष्ठिर रहते होंगे, वहाँ के लोग असत्य भाषण का त्याग करने वाले, याुभ, कल्याण एवं मंगल से युक्त, शुभ वस्तुओं की प्राप्ति के इच्छुक तथा शुभ में ही मन लगाने वाले होंगे। ‘सदा इष्टजनों कर प्रिय करना ही उनका व्रत होगा। कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर धर्मात्मा हैं। उनमें सत्य, र्धर्य, दान, परम शानित, अटल क्षमा, लज्जा, श्री, कीर्ति, उत्कृष्ट तेज, दयालुता और सरलता आदि गुण सदा रहते हैं। अतः अन्य साधारण मनुष्यों की तो बात ही क्या, द्विजाति (ब्राह्मण, क्षत्रिय तथा वैश्य) भी उन्हें नहीं पहचान सकते।

‘इसलिये जहाँ ऐसे लक्षण पाये जायँ, वहीं बुद्धिमान युधिष्ठिर का यत्नपूर्वक छिपाया हुआ निवास स्थान हो सकता है; वहीं उनका कोई उत्कृश्ट आश्रय होना सम्भव है। इसके विपरीत मैं और कोई बात नहीं कह सकता। ‘कुरुनन्दन! यदि मेरी बातों पर तुम्हें विश्वास हो, तो इसी प्रकार सोच-विचारकर जो काम करने में तुम्हें अपना हित जान पड़े, उसे शीघ्र करो’।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत गोहरणपर्व में गुप्तचर भेजने के विषय में भीष्मवचन सम्बन्धी अट्ठाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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