महाभारत विराट पर्व अध्याय 25 श्लोक 16-22

पन्चविंश (25) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: पन्चविंश अध्याय: श्लोक 16-22 का हिन्दी अनुवाद

शत्रओं को संताप देने वाले राजेश्वर! पाण्डवों के इन्द्रसेन आदि सारथि उनके बिना ही द्वारका पहुँच गये हैं वहाँ न तो द्रौपदी है और न महान् व्रतधारी पाण्डव ही हैं।। जान पड़ता है; वे बिल्कुल नष्ट हो गये। भरेतश्रेष्ठ! आपको नमसकार है। हम महात्मा पाण्डवों के मार्ग, निवास-स्थान, प्रवृत्ति अथवा उनके द्वारा किये गये कार्य के विषय में कुछ भी जानकारी प्रापत नहीं कर सके। प्रजापालक नरेश! इसके बाद हमारे लिये क्या आज्ञा है ? बताइये, पाण्डवों को ढूंढने के लिये हम पुनः क्या करें ?

वीर! हमारी एक बात और सुलिये? यह आपको प्रिय लगेगी। इसमें आपके लिये मंगलजनक समाचार है। राजन्! मत्स्यराज विराट के जिस महाबली सेनापति सूतपुत्र कीचक ने बहुत बड़ी सेना के द्वारा त्रिगर्तदेश और वहाँ के निवासियों को तहस-नहस कर दिया था, भारत! गन्धर्वों ने उस दुष्टात्मा को उसके सहोदर भाइयों सहित रात्रि में गुप्तरूप से मार डाला है। अब वह श्मशानभूमि में पड़ा सो रहा है।

उदारचित कीचक राजा विराअ का साला और सेनापति था। रानी सुदेष्णा का वह बड़ा भाई लगता था। कीचक शूरवीर, व्यथारहित, उत्साही, महापराक्रमी, नीतिमान्, बलवान्, युद्ध की कला को जानने वाला, शत्रुवीरों का संहार करने में समर्थ, सिंह के समान पराक्रम सम्पन्न, प्रजारक्षण में कुशल, शत्रुओं को काबू में लाने की शक्ति रखने वाला, बड़े-बडत्रे युद्धों में बैरियों पर विजय पाने वाला, अत्यन्त क्रोधी, अमानी, नर-नारियों के मन को आह्लादित करने वाला, रणप्रिय धीर और बोलने में चतुर था।

नरेश्वर! वह अमर्षशील दुष्टात्मा कीचक एक स्त्री के कारण गन्धर्वों द्वारा आधी रात में अपने भाइयों सहित मार डाला गया है। उसके प्रिय सुहृद और श्रेष्ठ सैनिक भी मारे गये हैं। कुरुनन्दन! शत्रुओं के पराभाव का प्रिय संवाद सुनकर आप कृतकृत्य हों और इसके बाद जो कुछ करना हो, वह करें।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत गोहरणपर्व में गुप्तचरों के लौटकर आने से सम्बन्ध रखने वाला पच्चीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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