महाभारत विराट पर्व अध्याय 13 श्लोक 30-46

त्रयोदशम (13) अध्याय: विराट पर्व (समयपालन पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व त्रयोदशमोऽध्यायः श्लोक 30-46 का हिन्दी अनुवाद


कभी वे प्रतिपक्षी को गोद में घसीट लाते, कभी खेल में ही उसे सामने खींच लेते, कभी आगे-पीछे, कभी दायें-बायें पैंतरे बदलते और कभी सहसा पीछे ढकेलकर पटक देते थे। इस तरह दोनों दोनों को अपनी ओर खींचते और घुटनों से एक-दूसरे पर प्रहार करते थे। उस सामूहिक उत्सव में पहलवानों और जनसमुदाय के निकट उन दोनों में केवल बाहुबल, शारीरिक बल तथा प्राणबल से किसी अस्त्र-शस्त्र के बिना बड़ा भयंकर युद्ध हुआ।

राजन्! इन्द्र और वृत्रासुर के समान भीम और जीमूत के उस मल्लयुद्ध में सब लोगों को बड़ा मनोरंजन हुआ। सभी दर्शक जीतने वाले का उत्साह बढ़ाने के लिये जोर-जोर से हर्षनाद कर उठते थे। तदनन्तर चौड़ी छाती और लंबी भुजा वाले, कुश्ती के दाँव-पेंच में कुशल वे दोनों वीर गम्भीर गर्जना के साथ एक-दूसरे को डाँट बताते हुए लोहे के परिघ (माटे डंडे) जैसी बाँहें मिलाकर परस्पर भिड़ गये। फिर विपुलपराक्रमी शत्रुहन्ता महाबाहु भीमसेन ने गर्जना करते हुए, जैसे सिंह हाथी पर झपटे, उसी प्रकार झपटकर जीमूत को दोनों हाथों से पकड़कर खींचा और ऊपर उठाकर उसे घुमाना आरम्भ किया। यह देख वहाँ आये हुए पहलवानों तथा मत्स्यदेश की प्रजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। सौ बार घुमाने पर जब वह धैर्य, साहस और चेतना से भी हाथ धो बैठा, तब बड़ी-बड़ी बाहुओं वाले वृकोदर ने उसे पृथ्वी पर गिराकर मसल डाला। इस प्रकार उस लोकविख्यात वीर जीमूत के मारे जाने पर राजा विराट को अपने बन्धु-बान्धवों के साथ बड़ी प्रसन्नता हुई। उस समय कुबेर के समान महामनस्वी राजा विराट ने अत्यन्त हर्ष में भरकर बल्लव को उस विशाल रंगभूमि में ही बहुत धन दिया।

इसी तरह बहुत-से पहलवानों और महाबली पुरुषों को मारकर भीमसेन ने मत्स्यनरेश विराट का उत्तम प्रेम प्राप्त किया। जब वहाँ उनकी जोड़ का कोई पहलवान नहीं रह गया, तब विराट उन्हें व्याघ्रों, सिंहों और हाथियों से लड़ाने लगे। कभी-कभी विराट की प्रेरणा से स्त्रियों के अन्तःपुर में जाकर भीमसेन उन्हें दिखाने के लिये महान् बलवान् और मतवाले सिंहों से लड़ा करते थे। पाण्डुनन्दन अर्जुन ने भी अपने गीत और नृत्य से राजा विराट तथा अन्तःपुर की सम्पूर्ण स्त्रियों को संतुष्ट कर लिया था।

इसी प्रकार नकुल ने जहाँ-तहाँ आये हुए वेगवान् घोड़ों को सुशिक्षित करके नृपश्रेष्ठ विराट को प्रसन्न किया था। प्रसन्न होकर राजा ने पुरस्कार के रूप में बहुत-सा धन दिया था। इसी तरह सहदेव के द्वारा शिक्षित एवं विनीत किये हुए बैलों को देखकर नरश्रेष्ठ विराट ने उन्हें भी इनाम में बहुत धन दिया। राजन्! अपने सम्पूर्ण महारथी पतियों को इस प्रकार क्लेश उठाते देख द्रौपदी के मन में खेद होता था और वह लंबी साँसें भरती रहती थी। इस प्रकार वे पुरुषशिरोमणि पाण्डव उस समय राजा विराट के भिन्न-भिन्न कार्य संभालते हुए वहाँ छिपकर रहते थे।


इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत समयपालनपर्व में जीमूतवध सम्बन्धी तेरहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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