एकादशम (11) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)
महाभारत: विराट पर्व: एकादशम अध्याय: श्लोक 1-14 का हिन्दी अनुवाद
विराट बोले- बृहन्नले! में तुम्हें अभीष्ट वर देता हूँ। तुम मेरी पुत्री को तथा उसके समान अवस्था वाली अन्य राजकुमारियों को नृत्य कला सिखलाओ। परंतु मुझे यह कर्म तुम्हारे योग्य नहीं जान पड़ता। तुम तो समुद्र से घिरी हुई सम्पूर्ण पृथ्वी के शासक होने योग्य हो। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! तदनन्तर मत्स्य नरेश ने बृहन्नला की गीत, नृत्य और बाजे बजाने की कलाओं में परीक्षा करके अपने अनेक मन्त्रियों से यह सलाह ली कि इसे अन्तःपुर में रखना चाहिये या नहीं। फिर तरुणी स्त्रियों द्वारा शीघ्र ही उनके नपुंसक होने की जाँच करायी। जब सब तरह से उनका नपुंसक होना ठीक प्रमाणित हो गया, तब यह सुन-समझकर उन्होंने बृहन्नला को कन्या के अन्तःपुर में जाने की आज्ञा दी। शक्तिशाली अर्जुन विराटकन्या उत्तरा, उसकी सखियों तथा सेविकाओं को भी गीत, वाद्य एवं नृत्य कला की शिक्षा देने लगे। इससे वे उन सबके प्रिय हो गये। छद्मवेश में कन्याओं के साथ रहते हुए भी अर्जुन अपने मन को सदा पूर्णरूप से वश में रखते और उन सबको प्रिय लगने वाले कार्य करते थे। इस रूप में वहाँ रहते हुए अर्जुन को बाहर अथवा अन्तःपुर के कोई भी मनुष्य पहचान न सके।
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत पाण्डवप्रवेशपर्व में अर्जुन प्रवेश नामक ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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