महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 23-47

चतुरशीतितम (84) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: चतुरशीतितम अध्याय: श्लोक 23-47 का हिन्दी अनुवाद


नरेश्वर! देवी से दक्षिणार्थ भाग में रथावर्त नामक तीर्थ है। धर्मज्ञ! जो श्रद्धालु एवं जितेन्द्रिय पुरुष उस तीर्थ की यात्रा करता है, वह महादेव जी के प्रसाद से परम गति प्राप्त कर लेता है। भरतश्रेष्ठ! तदनन्तर महाप्राज्ञ पुरुष उस तीर्थ की परिक्रमा करके धारा की यात्रा करे, जो सब पापों से छुड़ाने वाली है। नरव्याघ्र! नराधिप! वहाँ स्नान करके मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता है। धर्मज्ञ! वहाँ से महापर्वत हिमालय को नमस्कार करके गंगाद्वार (हरिद्वार) की यात्रा करे, जो स्वर्गद्वार के समान है; इसमें संशय नहीं है। वहाँ एकाग्रचित्त हो कोटितीर्थ में स्नान करे। ऐसा करने वाला मनुष्य पुण्डरीक यज्ञ का फल पाता और अपने कुल का उद्धार करता है।

वहाँ एक रात निवास करने से सहस्र गोदान का फल मिलता है। सप्तगंग, त्रिकगंग और शक्रावर्ततीर्थ में विधिपूर्वक देवताओं तथा पितरों का तर्पण करने वाला मनुष्य पुण्यलोक में प्रतिष्ठित होता है। तदनन्तर कनखल में स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है। नरेश्वर! उसके बाद तीर्थसेवी मनुष्य कपिलवट तीर्थ में जाये। वहाँ रातभर उपवास करने से उसे सहस्र गोदान का फल मिलता है। राजेन्द्र! कुरुश्रेष्ठ! वहीं नागराज महात्मा कपिल का तीर्थ है, जो सम्पूर्ण लोकों में विख्यात है। महाराज! वहाँ नागतीर्थ में स्नान करना चाहिये। इससे मनुष्य को सहस्र कपिला दान का फल प्राप्त होता है। तत्पश्चात् शान्तनु के उत्तम तीर्थ ललितक में जाये। राजन्! वहाँ स्नान करने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता।

जो मनुष्य गंगा-यमुना के बीच संगम (प्रयाग) में स्नान करता है, उसे दस अश्वमेध यज्ञों का फल मिलता है और वह अपने कुल का उद्धार कर देता है। राजेन्द्र! तदनन्तर लोकविख्यात सुगन्धातीर्थ की यात्रा करे। इससे सब पापों से विशुद्धचित्त हुआ मानव ब्रह्मलोक में पूजित होता है। नरेश्वर! तदनन्तर तीर्थसेवी पुरुष रुद्रावर्ततीर्थ में जाये। राजन्! वहाँ स्नान करके मनुष्य स्वर्गलोक में जाता है। नरश्रेष्ठ! गंगा और सरस्वती के संगम में स्नान करने से मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है। भगवान् भद्रकर्णेश्वर के समीप जाकर विधिपूर्वक उनकी पूजा करने वाला पुरुष कभी दुर्गति में नहीं पड़ता और स्वर्गलोक में पूजित होता है। नरेन्द्र! तत्पश्चात् तीर्थसेवी मानव कुब्जाम्रक तीर्थ में जाये। वहाँ उसे सहस्र गोदान का फल मिलता है और अंत में वह स्वर्गलोक को जाता है।

नरपते! तत्पश्चात् तीर्थसेवी अरुन्धतीवट के समीप जाये और सामुद्रकतीर्थ में स्नान करके ब्रह्मचर्यपालनपूर्वक एकाग्रचित्त हो तीन रात उपवास करे। इससे मनुष्य अश्वमेध यज्ञ और सहस्र गोदान का फल पाता तथा उसके कुल का उद्धार कर देता है। तदनन्तर ब्रह्मचर्यपालनर्पूवक चित्त को एकाग्र करके ब्रह्मवर्ततीर्थ में जाये। इससे वह अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और सोमलोक को जाता है। यमुनाप्रभव नामक तीर्थ में जाकर यमुना जल में स्नान करके अश्वमेध यज्ञ का फल पाकर मनुष्य स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। दर्वीसंक्रमण नामक त्रिभुवनपूजित तीर्थ में जाने से तीर्थयात्री अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है। सिंधु के उद्गम स्थान में, जो सिद्ध-गन्धवों द्वारा सेवित है, जाकर पांच रात उपवास करने से प्रचुर सुवर्ण राशि की प्राप्ति होती है। तदनन्तर मनुष्य परम दुर्गम वेदीतीर्थ में जाकर अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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