महाभारत वन पर्व अध्याय 83 श्लोक 24-46

त्र्यशीतितम (83) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: त्र्यशीतितम अध्याय: श्लोक 24-46 का हिन्दी अनुवाद


भरतश्रेष्ठ! वह कुरुक्षेत्र का विख्यात द्वार है। उनकी परिक्रमा करके तीर्थयात्री मनुष्य एकाग्रचित्त हो पुष्करतीर्थ के तुल्य उस तीर्थ में स्नान करके देवताओं ओर पितरों की पूजा करे। राजन्! इससे तीर्थयात्री कृतकृत्य होता और अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त करता है। उत्तम श्रेणी के महात्मा जमग्निनन्दन परशुराम ने उस तीर्थ का निर्माण किया है। राजेन्द्र! वहाँ उदीप्त तेजस्वी वीरवर परशुराम ने सम्पूर्ण क्षत्रिय कुल का वेगपूर्वक संहार करके पांच कुण्ड स्थापित किये थे। पुरुषसिंह! उन कुण्डों को उन्होंने रक्त से भर दिया था, ऐसा सुना जाता है। उसी रक्त से परशुराम जी ने अपने पितरों और प्रपितामहों का तर्पण किया। राजन्! तब वे पितर अत्यन्त प्रसन्न हो परशुराम जी से इस प्रकार बोले। पितरों ने कहो- 'महाभाग राम! परशुराम! भृगुनन्दन! विभो! हम तुम्हारी पितृभक्ति से और तुम्हारे पराक्रम से बहुत खुश हुए हैं। महाद्युते! तुम्हारा कल्याण हो। तुम कोई वर मांगो। बोलो, क्या चाहते हो?'

राजेन्द्र! उनके ऐसा कहने पर योद्धाओं में श्रेष्ठ परशुराम ने हाथ जोड़कर आकाश में खड़े हुए उन पितरों से कहा- ‘पितृगण! यदि आप लोग मुझ पर प्रसन्न हैं और यदि मैं आपका अनुग्रहपात्र होऊं तो मैं आपका कृपा-प्रसाद चाहता हूँ। पुनः मेरी तपस्या पूरी हो जाये। मैंने जो रोष के वशीभूत होकर सारे क्षत्रिय कुल का संहार कर दिया है, आपके प्रभाव से मैं उस पाप से मुक्त हो जाऊं तथा मेरे ये कुण्ड भूमण्डल में विख्यात तीर्थस्वरूप हो जायें।'

परशुराम जी का यह शुभ वचन सुनकर उनके पितर बड़े प्रसन्न हुए और हर्ष में भरकर बोले- ‘वत्स! तुम्हारी तपस्या इस विशेष पितृभक्ति से पुनः बढ़ जाये। तुमने जो रोष में भरकर क्षत्रिय कुल का संहार किया है, उस पाप से तुम मुक्त हो गये। वे क्षत्रिय अपने ही कर्म से मरे हैं। तुम्हारे बनाये हुए ये कुण्ड तीर्थस्वरूप होंगे, इसमें संशय नहीं है। जो इन कुण्डों में नहाकर पितरों का तर्पण करेगा, उन्हें तृप्त हुए पितर ऐसा वर देंगे, जो इस भूतल पर दुलर्भ है। वह उसके लिये मनोवांछित कामना ओर सनातन स्वर्गलोक सुलभ कर देंगे’।

राजन्! इस प्रकार वर देकर परशुराम जी के पितर प्रसन्नतापूर्वक उनसे अनुमति ले वहीं अन्तर्धान हो गये। इस प्रकार भृगुनन्दन महात्मा परशुराम के वे कुण्ड बड़े पुण्यमय माने गये हैं। राजन्! जो उत्तम व्रत एवं ब्रहाचर्य का पलान करते हुए परशुराम जी के उन कुण्डों के जल में स्नान करके उनकी पूजा करता है, उसे प्रचुर सुवर्ण राशि की प्राप्ति होती है। कुरुश्रेष्ठ! तदनन्तर तीर्थसेवी मनुष्य वंशमूलकतीर्थ में जाये। राजन्! वंशमूलक में स्नान करके मनुष्य अपने कुल का उद्धार कर देता है। भरतश्रेष्ठ! कायशोधनतीर्थ में जाकर स्नान करने से शरीर की शुद्धि होती है, इसमें संशय नहीं। शरीर शुद्ध होने पर मनुष्य परम उत्तम कल्याणमय लोकों में जाता है।

धर्मज्ञ! तदनन्तर त्रिभुवनविख्यात लोकोद्धारतीर्थ में जाये, जो तीनों लोकों में पूजित है। वहाँ पूर्वकाल में सर्वशक्तिमान् भगवान् विष्णु ने कितने ही लोकों का उद्धार किया था। राजन् लोकोद्धार में जाकर उस उत्तम तीर्थ में स्नान करने से मनुष्य आत्मीयजनों का उद्धार करता है। मन को वश में करके श्रीतीर्थ में जाकर स्नान करके देवताओं और पितरों की पूजा करने से मनुष्य उत्तम सम्पत्ति प्राप्त करता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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