एकोनाशीतितम (79) अध्याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)
महाभारत: वन पर्व: एकोनाशीतितम अध्याय: श्लोक 21-31 का हिन्दी अनुवाद
राजन्! उस महान् वन में अपने प्रिय भाई अर्जुन को तपस्या करते सुनकर पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर उनके लिये बार-बार शोक करने लगे। अर्जुन के वियोग में संतप्त हृदय वाले वे युधिष्ठिर निर्भय आश्रय की इच्छा रखते हुए उस महान् वन में रहते थे और अनेक प्रकार के ज्ञान से सम्पन्न ब्राह्मणों से अपना मनोगत अभिप्राय पूछा करते थे। राजन्! द्यूतविद्या का रहस्य जानकर कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर भीमसेन आदि के साथ मन-ही-मन बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने एक साथ बैठे हुए सब भाईयों की ओर देखा, उस समय वहाँ अर्जुन को न देखकर उनके नेत्रों में आंसू भर आये और वे अत्यन्त संतप्त हो भीमसेन से बोले। युधिष्ठिर ने कहा- 'भीमसेन! मैं तुम्हारे छोटे भाई अर्जुन को कब देखूंगा? कुरुश्रेष्ठ अर्जुन मेरे ही लिये अत्यन्त कठोर तपस्या करते हैं। मैं उन्हें अक्षहृदय (द्यूतविद्या के रहस्य) का ज्ञान कब कराऊंगा। भीम! मेरे द्वारा ग्रहण किये हुए अक्षहृदय को सुनकर पुरुषसिंह अर्जुन बहुत प्रसन्न होगें, इसमें संशय नहीं है।'
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यापर्व में ब्रहदश्वगमन विषयक उन्यासीवां अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|