महाभारत वन पर्व अध्याय 75 श्लोक 19-28

पंचसप्ततितम (75) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: पंचसप्ततितम अध्याय: श्लोक 19-28 का हिन्दी अनुवाद


चेष्टाओं द्वारा उसके मन में यह प्रबल आशंका जम गयी कि बाहुक मेरे पति ही हैं। फिर तो वह रोने लगी और मधुर वाणी में केशिनी से बोली- ‘सखी! एक बार फिर जाओ और जब बाहुक असावधान हो तो उसके द्वारा विशेष विधि से उबालकर तैयार किया हुआ फलों का गूदा रसोईघर में से शीघ्र उठा लाओ।’

केशिनी दमयन्ती की प्रियकारिणी सखी थी। वह तुरन्त गयी और जब बाहुक का ध्यान दूसरी और गया, तब वह उसके उबाले हुए गरम-गरम फलों के गूदे में से थोड़ा-सा निकालकर तत्काल ले गयी।

कुरुनन्दन! केशिनी ने यह फलों का गूदा दमयन्ती को दे दिया। उसे पहले अनेक बार नल के द्वारा उबाले हुए फलों के गूदे के स्वाद का अनुभव था। उसे खाकर वह पूर्णरूप से इस निश्चय पर पहुँच गयी कि बाहुक सारथि वास्तव में राजा नल हैं। फिर तो वह अत्यन्त दु:खी होकर विलाप करने लगी। उस समय उसकी व्याकुलता बहुत बढ़ गयी।

भारत! फिर उसने मुंह धोकर केशिनी के साथ अपने बच्चों को बाहुक के पास भेजा। बाहुकरूपी राजा नल ने इन्द्रसेना और उसके भाई इन्द्रसेन को पहचान लिया और दौड़कर दोनों बच्चों को छाती से लगाकर गोद में ले लिया। देवकुमारों के समान उन दोनों सुन्दर बालकों को पाकर निषधराज नल अत्यन्त दुःखमय हो जोर-जोर से रोने लगे। उन्होंने बार-बार अपने मनोविकार दिखाये और सहसा दोनों बच्चों को छोड़कर केशिनी से इस प्रकार कहा- ‘भद्रे! ये दोनों बालक मेरे पुत्र और पुत्री के समान हैं, इसीलिये इन्हें देखकर सहसा मेरे नेत्रों से आंसू बहने लगे। भद्रे! तुम बार-बार आती-जाती हो, लोग किसी दोष की आशंका कर लेंगे और हम लोग इस देश के अतिथि हैं; अतः तुम सुखपूर्वक महल में चली जाओ’।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अंतर्गत नलोपाख्यानपर्व में नल का अपनी पुत्री और पुत्र को देखने से सम्बन्ध रखने वाला पचहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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