महाभारत वन पर्व अध्याय 73 श्लोक 20-36

त्रिसप्ततितम (73) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: त्रिसप्ततितम अध्याय: श्लोक 20-36 का हिन्दी अनुवाद


तदनन्तर भीम ने बड़े आदर-सत्कार के साथ उन्हें अपनाया और राजा ऋतुपर्ण का भलीभाँति आदर-सत्कार किया। भूपाल ऋतुपर्ण रमणीय कुण्डिनपुर में ठहर गये। उन्हें बार-बार देखने पर भी वहाँ (स्वयंवर जैसी) कोई चीज नहीं दिखायी दी। वे विदर्भ नरेश से मिलकर सहसा इस बात को न जान सके कि यह स्त्रियों की अकस्मात् गुप्त मन्त्रणा-मात्र थी।

भरतनन्दन युधिष्ठिर! विदर्भराज ने स्वागतपूर्वक ऋतुपर्ण से पूछा- 'आपके यहाँ पधारने का क्या कारण है?' राजा भीम यह नहीं जानते थे कि दमयन्ती के लिये ही इनका शुभागमन हुआ है। राजा ऋतुपर्ण भी बड़े बुद्धिमान् और सत्यपराक्रमी थे। उन्होंने वहाँ किसी भी राजा या राजकुमार को नहीं देखा। ब्राह्मणों का भी वहाँ समागम नहीं हो रहा था। स्वयंवर की तो कोई चर्चा तक नहीं थी। तब कोशल नरेश ने मन-ही-मन कुछ विचार किया और विदर्भराज से कहा- ‘राजन्! मैं आपका अभिवादन करने के लिये आया हूँ।' यह सुनकर राजा भीम भी मुस्करा दिये और मन-ही-मन सोचने लगे- ‘ये बहुत-से गांवों को लांघकर सौ योजन से भी अधिक दूर चले आये हैं, किंतु कार्य इन्होंने बहुत साधारण बतलाया है। फिर इनके आगमन का क्या कारण है, इसे मैं ठीक-ठीक न जान सका।

‘अच्छा, जो भी कारण होगा पीछे मालूम कर लूंगा। ये जो कारण बता रहे हैं, इतना ही इनके आगमन का हेतु नहीं है।’ ऐसा विचार कर राजा ने उन्हें सत्कारपूर्वक विश्राम के लिये विदा किया और कहा- ‘आप बहुत थक गये होंगे, अतः विश्राम कीजिये।’ विदर्भ नरेश के द्वारा प्रसन्नतापर्वूक आदर-सत्कार पाकर राजा ऋतुपर्ण को बड़ी प्रसन्नता हुई। फिर वे राजसेवकों के साथ गये और बताये हुए भवन में विश्राम के लिये प्रवेश किया।

राजन्! वार्ष्‍णेय सहित ऋतुपर्ण के चले जाने पर बाहुक रथ लेकर रथशाला में आ गया। उसने उन घोड़ों को खोल दिया और अश्वशास्त्र की विधि के अनुसार उनकी परिचर्या करने के बाद घोड़ों को पुचकार कर उन्हें धीरज देने के पश्चात् वह स्वयं भी रथ के पिछले भाग में जा बैठा। दमयन्ती भी शोक से आतुर हो राजा ऋतुपर्ण, सूतपुत्र वार्ष्‍णेय तथा पूर्वोक्त बाहुक को देखकर सोचने लगी- ‘यह किसके रथ की घर्घराहट सुनायी पड़ती थी। वह गम्भीर घोष तो महाराज नल के रथ-जैसा था; परन्तु इन आगन्तुकों में मुझे निषधराज नल नहीं दिखायी देते। वार्ष्‍णेय ने भी नल के समान ही अश्वविद्या सीख ली हो, निश्चय ही यह सम्भावना की जा सकती है। तभी आज रथ की आवाज बड़े जोर से सुनायी दे रही थी, जैसे नल के रथ हांकते समय हुआ करती है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि राजा ऋतुपर्ण भी वैसे ही अश्वविद्या में निपुण हों, जैसे राजा नल हैं; क्योंकि नल के ही समान इनके रथ का गम्भीर घोष लक्षित होता है’।

युधिष्ठिर! इस प्रकार विचार करके शुभलक्षण दमयन्ती ने नल का पता लगाने के लिये अपनी दूती को भेजा।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में ऋतुपर्ण का राजा भीम के नगर में प्रवेश विषयक तिहतरवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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