त्रिषष्टितम (63) अध्याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)
महाभारत: वन पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 35-39 का हिन्दी अनुवाद
इधर व्याध की कुचेष्टा वाणी द्वारा रोकने पर रुक सके, ऐसी प्रतीत नहीं होती थी। तब (उस व्याध पर अत्यन्त रुष्ट हो) उसने उसे शाप दे दिया- ‘यदि मैं निषधराज नल के सिवा दूसरे किसी पुरुष का मन में भी चिन्तन भी करती होऊं, तो इसके प्रभाव से यह तुच्छ व्याध प्राणशून्य होकर गिर पड़े’। दमयन्ती के इतना कहते ही वह व्याध आग से जले हुए वृक्ष की भाँति प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में अजगरग्रस्त दमयन्तीमोचन विषयक तिरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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