द्विपंचाशत्तम (52) अध्याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)
महाभारत: वन पर्व: द्विपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 55-59 का हिन्दी अनुवाद
राजन्! उनके साथ न सेवक थे न रथ, न भाई थे न बान्धव। वन में रहते समय उनके पास ये वस्तुएं कदापि शेष नहीं थी। तुम तो देवतुल्य पराक्रमी वीर भाइयों से घिरे हुए हो। ब्रह्मा जी के समान तेजस्वी श्रेष्ठ ब्राह्मण तुम्हारे चारों ओर बैठे हुए हैं। अतः तुम्हें शोक नहीं करना चाहिये। युधिष्ठिर बोले- 'वक्ताओं में श्रेष्ठ मुने! मैं उत्तम महामना राजा नल का चरित्र विस्तार के साथ सुनना चाहता हूँ। आप मुझे बताने की कृपा करें।'
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अंतगर्त नलोपाख्यानपर्व में बृहदश्व-युधिष्ठिर संवाद विषयक बावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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