एकत्रिंश (31) अध्याय: वन पर्व (अरण्य पर्व)
महाभारत: वन पर्व: एकत्रिंश अध्याय: श्लोक 35-42 का हिन्दी अनुवाद
धर्म का फल तुरन्त दिखायी न दे तो इनके कारण धर्म एवं देवताओं पर आशंका नहीं करनी चाहिये। दोषदृष्टि न रखते हुए यत्नपूर्वक यज्ञ और दान करते रहना चाहिये।। कर्मो का फल यहाँ अवश्य प्राप्त होता है, यह धर्मशास्त्र विधान है। यह बात ब्रह्मा जी ने अपने पुत्रों से कही है, जिसे कश्यप ऋषि जानते हैं। इसलिये कृष्णे! सब कुछ सत्य है, ऐसा निश्चय करके तुम्हारा धर्मविषयक संदेह कुहरे की भाँति नष्ट हो जाना चाहिये। तुम अपने इस नास्तिकतापूर्ण विचार को त्याग दो और समस्त प्राणियों का भरण पोषण करने वाले ईश्वर पर आक्षेप बिल्कुल न करो। तुम शास्त्र और गुरुजनों के उपेदशानुसार ईश्वर को समझने की चेष्टा करो और उन्हीं को नमस्कार करो। आज जैसी तुम्हारी बुद्धि है, वैसी नहीं रहनी चाहिये। कृष्णे! जिनके कृपाप्रसाद से उनके प्रति भक्तिभाव रखने वाला मरणधर्मा मनुष्य अमरत्व को प्राप्त हो जाता है, उन परमदेव परमेश्वर की तुमको किसी प्रकार अवहेलना नहीं करनी चाहिये।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगमनपर्व में युधिष्ठिरवाक्य विषयक इकतीसवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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