महाभारत वन पर्व अध्याय 295 श्लोक 18-23

पन्चनवत्यधिकद्विशततम (295) अध्‍याय: वन पर्व (पतिव्रतामाहात्म्यपर्व)

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महाभारत: वन पर्व: पन्चनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः 18-23 श्लोक का हिन्दी अनुवाद


पिता के चले जाने पर सावित्री अपने सब आभूषण उतार कर वल्कल तथा गेरुआ वस्त्र पहनने लगी। सावित्री ने सेवा, गुण, विनय, संयम और सब के मन के अनुसार कार्य करने से सभी को प्रसन्न कर लिया।

उसने शारीरिक सेवा तथा वस्त्राभूषण आदि के द्वारा सास को और वाणी के संयमपूर्वक देवोचित सत्कार द्वारा ससुर को संतुष्ट किया। इसी प्रकार मधुर सम्भाषण, कार्य-कुशलता, शान्ति तथा एकान्त सेवा द्वारा पतिदेव को भी सदा प्रसन्न रक्खा।

भरतनन्दन! इस प्रकार उन सब लोगों को उस आश्रम में रहकर तपस्या करते कुछ काल व्यतीत हो गया।। इधर सावित्री निरन्तर चिन्ता से गली जा रही थी। दिन-रात सोते-उठते हर समय नारद जी की कही हुई बात उसके मन में बनी रहती थी। वह उसे क्षण भर के लिये भी नहीं भूलती थी।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत पतिव्रतामाहात्म्यपर्व में सावित्री उपाख्यान विषयक दो सौ पंचानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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