सप्तशीत्यधिकद्वशततम (287) अध्याय: वन पर्व (रामोपाख्यान पर्व)
महाभारत: वन पर्व: सप्तशीत्यधिकद्वशततम अध्यायः श्लोक 18-29 का हिन्दी अनुवाद
युधिष्ठिर! फिर तो दूषण के भाइयों तथा बुद्धिमान लक्ष्मण में ऐसा भयंकर युद्ध हुआ, जो रोंगटे खड़े कर देने वाला था। लक्ष्मण उन दोनों राक्षसों पर बाणों की बड़ी भारी वर्षाकर रहे थे और व दोनों वीर राक्षस भी अत्यन्त कुपित होकर लक्ष्मण पर बाणों की बौछार करते थे। इस प्रकार वज्रवेग और प्रमाथी और महाबाहु लक्ष्मण का वह भयंकर संग्राम दो घड़ी तक अबाध गति से चलता रहा। इसी बीच वायुनन्दन हनुमान ने पर्वत शिला हाथ में लेकर वज्रवेग नामक राक्षस के ऊपर आक्रमण किया और उसके प्राण ले लिये। महाबली नील नामक वानर ने एक विशाल चट्टान लेकर दूषण के दूसरे भाई प्रमाथी पर हमला किया और उसका कचूमर निकाल दिया। तदनन्तर श्रीराम और रावण की सेना में परस्पर आक्रमणपूर्वक भीषण संग्राम आरम्भ हो गया, जो कटु परिणाम का जनक था। वनवासी वानरों ने सैंकड़ों राक्षसों को तथा राक्षसों ने वानरों को घायल किया। उस युद्ध में अधिकांश राक्षस ही मारे जा रहे थे, वानर नहीं।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत रामोपाख्यानपर्व में कुम्भकर्ण आदि का वध विषयक दो सौ सत्तासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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