महाभारत वन पर्व अध्याय 284 श्लोक 34-41

चतुरशीत्यधिकद्वशततम (284) अध्‍याय: वन पर्व (रामोपाख्‍यान पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: चतुरशीत्यधिकद्वशततम अध्यायः श्लोक 34-41 का हिन्दी अनुवाद


वे चाहरदीवारी की शोभा बढ़ाते हुए अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा करके वनवासी वानरों को खदेड़ने लगे और अपने उत्तम पराक्रम का परिचय देने लगे। उड़द के ढेर जैसे काले-कलूटे उन भयंकर निशाचरों ने लड़कर पुनः उस चहारदीवारी को वानरों से सूनी कर दिया। उनके शूलों की मार से अंग विदीर्ण हो जाने के कारण बहुत-से श्रेष्ठ वानर धराशायी हो गये।

इसी प्रकार वानरों के हाथों से खम्भों की मार खाकर कितने ही निशाचर युद्ध का मैदान छोड़कर भाग गये और कितने वहीं ढेर हो गये। तत्पश्चात् वीर राक्षसों का वानरों के साथ सिर के बाल पकड़कर युद्ध होने लगा। वे नखों और दाँतों से भी एक दूसरे को काट खाते थे। दोनों ओर से गर्जना करते हुए वानर तथा राक्षस इस प्रकार युद्ध करते थे कि मरकर पृथ्वी पर गिर जाने के बाद भी एक-दूसरे को छोड़ते नहीं थे।

उधर श्रीरामचन्द्र जी भी, जैसे बादल जल बरसाते हैं, उसी प्रकार बाण समूहों की वर्षा करने लगे और वे बाण लंका में घुसकर वहाँ खड़े हुए निशाचरों के प्राण लेने लगे। क्लेश और थकावट पर विजय पाने वाले सुदृढ़ धनुर्धर सुमित्राकुमार लक्ष्मण भी सूचना दे-देकर नाराच नामक बाणों द्वारा दुर्ग के भीतर रहने वाले राक्षसों को भी मार गिराने लगे।

इस प्रकार लंका में भीषण मार-काट मचाने के बाद वानर सैनिक लक्ष्यसिद्धिपूर्वक विजय पाकर श्रीरघुनाथ जी की आज्ञा से युद्ध बंद करके शिविर की ओर लौट गये।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत रामोख्यानपर्व में लंका में प्रवेश विषयक दो सौ चौरासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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