द्विसप्तत्यधिकद्विशततम (272) अध्याय: वन पर्व (जयद्रथविमोक्षण पर्व)
महाभारत: वन पर्व: द्विसप्तत्यधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 77-81 का हिन्दी अनुवाद
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! उमापति भगवान् हर समस्त पापों का अपहरण करने वाले हैं। वे पशुरूपी जीवों के पालक, दक्षयज्ञ-विध्वसंक तथा त्रिपुरविनाशक हैं। उनके तीन नेत्र हैं और उन्हीं के द्वारा भगदेवता के नेत्र नष्ट किये गये हैं। भगवती उमा सदा उनके साथ रहती हैं। नृपश्रेष्ठ! भगवान् शिव सिन्धुराज जयद्रथ से पूर्वोक्त वचन कहकर भंयकर कानों और नेत्रों वाले भाँति-भाँति के अस्त्र उठाये रहने वाले अपने भंयकर पार्षदों के साथ, जिनमें बौने, कुबड़े और विकट आकृति वाले प्राणी भी थे, भगवती पार्वती सहित वहीं अन्तर्धान हो गये। तत्पश्चात् मन्दबुद्धि जयद्रथ भी अपने घर चला गया और पाण्डवगण उस काम्यकवन में उसी प्रकार निवास करने लगे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत जयद्रथविमोक्षणपर्व में दो सौ बहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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