षष्टयधिकद्विशततम (260) अध्याय: वन पर्व ( व्रीहिद्रौणिक पर्व )
महाभारत: वन पर्व: षष्टयधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक20-36 का हिन्दी अनुवाद
तुम से मिलकर हम बहुत प्रसन्न हैं और अपने ऊपर तुम्हारा अनुग्रह मानते हैं। इद्रियसंयम, धैर्य, संविमान (दान), शम, दम, सत्य और धर्म-ये सब गुण तुम में पूर्ण रूप से विद्यमान हैं। तुम्हारे-जैसा पवित्र अन्त:करण वाला दूसरा कोई नहीं है। तुमने अपने शुम कर्मों से सभी लोकों को जीत लिया; परमपद को प्राप्त कर लिया। अहो! स्वर्गवासी देवताओं ने भी तुम्हारे महान् दान की सर्वत्र घोषणा की है। उत्तम व्रत का पालन करने वाले महर्षे! तुम सदेह स्वर्ग लोक को जाओगे’। दुर्वासा मुनि इस प्रकार कह ही रहे थे कि एक देवदूत विमान के साथ मुद्गल ऋषि के पास आ पहुँचा। उस विमान में हंस एवं सारस जुते हुए थे। क्षुद्रघण्टिकाओं की जाली से उसे सुसज्जित किया गया था तथा उससे दिव्य सुगन्ध फैल रही थी। वह विमान देखने में बड़ा विचित्र और इच्छानुसार चलने वाला था। देवदुत ने ब्रह्मर्षि मुद्गल से कहा- ‘मुने! यह विमान आपको शुभ कर्मों से प्राप्त हुआ है। इस पर बैठिये। आप परम सिद्धि प्राप्त कर चुके हैं’। देवदूत के ऐसा कहने पर महर्षि मुद्गल ने उससे कहा- ‘देवदुत! मैं तुम्हारे मुख से स्वर्गवासियों के गुण सुनना चाहता हूँ। वहाँ रहने वालों में कौन-कौन से गुण होते हैं? कैसी तपस्या होती है? और उनका निश्चित विचार कैसा होता है? स्वर्ग में क्या सुख है और वहाँ क्या दोष है? प्रभो! सत्पुरुषों में सात पग एक साथ चलने से ही मित्रता हो जाती है, ऐसा कुलीन सत्पुरुषों का कथन है। मैं उसी मैत्री को सामने रखकर तुमसे उपर्युक्त प्रश्न पूछ रहा हूँ। इसके उत्तर में जो सत्य एवं हितकर बात हो, उसे बिना किसी हिचकिचाहट के कहो। तुम्हारी बात सुनकर उसी के द्वारा मैं अपने कर्तव्य का निश्चिय करूँगा’।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत व्रीहिद्रौणिकपर्व में मुद्गलोपाख्यान सम्बन्धी दो सौ साठवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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