महाभारत वन पर्व अध्याय 225 श्लोक 18-35

पच्चविंशत्‍यधिकद्विशततम (225) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्‍डेयसमस्‍या पर्व)

Prev.png

महाभारत: वन पर्व: पच्चविंशत्‍यधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 18-35 का हिन्दी अनुवाद


पंरतु उस कुमार का कण्‍ठ और पेट एक ही था। वह द्वितीया को अभिव्‍यक्त हुआ और तृतिया को शिशुरूप में सुशोभित होने लगा। चतुर्थी को वे कुमार स्कन्द सभी अंग-उपांगों से सम्‍पन्न हो गये। उस समय कुमार लाल रंग के विशाल बिजलीयुक्‍क्त बादल से आच्‍छादित थे। अत: अरुण रंग के मेघों की विशाल घटा के भीतर उदित हुए सूर्य की भाँति प्रकाशित हो रहे थे। त्रिपुरनाशक भगवान शिव ने देवशत्रुओं का विनाश करने वाले जिस विशाल तथा रोमांचकारी श्रेष्‍ठ धनुष को रख छोड़ा था, उसे बलवान् स्‍कन्‍द ने उठा लिया और बड़े जोर से गर्जना की। ये उस गर्जना द्वारा चराचर प्राणियों सहित इन तीनों लोकों को मूर्च्छित-सा कर रहे थे।

महान् मेघों की गम्‍भीर ध्‍वनि के समान उनकी उस गर्जना को सुनकर चित्र और ऐरावत नामक दो महागज वहाँ दौड़े आये। कुमार स्‍कन्‍द सूर्य की कान्ति के समान उद्भासित हो रहे थे। उन दोनों हाथियों को आते देख उन अग्निकुमार ने उन्‍हें दो हाथों से पकड़ लिया तथा एक हाथ में शक्ति और दूसरे में अरुण शिखा से विभूषित और बलवानों में श्रेष्‍ठ एवं विशाल शरीर वाले एक समीपवर्ती कुक्‍कुट (मुर्ग) को पकड़कर उन महाबाहु कुमार ने भयंकर गर्जना की और (उन हाथी, मुर्गे आदि को लिये हुए) क्रीड़ा करने लगे। तत्‍पश्चात् उन बलवान् वीर ने दोनों हाथों में उत्तम शंख लेकर बजाया, जो बलवान् प्राणियों को भी भयभीत कर देने वाला था। फिर वे दो भुजाओं से आकाश को बार-बार पीटने लगे। इस प्रकार क्रीड़ा करते हुए कुमार महासेन ऐसे जान पड़ते थे, मानो वे अपने मुखों से तीनों लोकों को पी जायेंगे।

अपरिमित आत्‍मबल से सम्‍पन्न और अद्भुत पराक्रमी स्कन्द पर्वत के शिखर पर उदय काल में अंशुमाली सूर्य की भाँति शोभा पा रहे थे। फिर वे उस पर्वत की चोटी पर बैठ गये और अपने अनेक मुखों द्वारा सम्‍पूर्ण दिशाओं की ओर देखने लगे। भाँति-भाँति की वस्‍तुओं को देखकर वे अमेयात्‍मा स्‍कन्‍द पुन: बालोचित कोलाहल करने लगे। उनकी इस गर्जना को सुनकर बहुत-से प्राणी पृथ्‍वी पर गिर गये। फिर भयभीत और उद्विग्नचित्त होकर उन सबने उन्‍हीं की शरण ली। उस समय जिन-जिन नाना वर्ण वाले जीवों ने उन स्‍कन्‍द देव की शरण ली, उन सबको ब्राह्मणों ने उनका महाबलवान् पार्षद बताया है।

उन महाबाहु ने उठकर उन सब प्राणियों को सान्‍त्‍वना दी और महापर्वत श्‍वेत पर खड़े-खड़े धनुष खींचकर बाणों की वर्षा प्रारम्‍भ कर दी। उन बाणों द्वारा उन्‍होंने हिमालय के पुत्र क्रौंच पर्वत को विदीर्ण कर दिया। उसी छिद्र में होकर हंस और गृध्र पक्षी मेरु पर्वत को जाते हैं। स्‍कन्‍द के बाणों से छिन्न-भिन्न हो वह क्रौंच पर्वत अत्‍यन्‍त आर्तनाद करता हुआ गिर पड़ा। उस समय उसके गिरने पर दूसरे पर्वत भी जोर-जोर से चीत्‍कार करने लगे। बलवानों में श्रेष्‍ठ और अमित आत्‍मबल से सम्‍पन्न कुमार उन अत्‍यन्‍त आर्त पर्वतों के उस चीत्‍कार को सुनकर भी विचलित नहीं हुए, अपितु हाथ से शक्ति को उठाकर सिंहनाद करने लगे।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः