एकविंशत्यधिकद्विशततम (221)) अध्याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)
महाभारत: वन पर्व: एकविंशत्यधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 29-31 का हिन्दी अनुवाद
जिसका चालू किया हुआ दर्श और पौर्णमास याग बीच में ही बंद हो जाये अथवा बिना आहुति किये ही रह जाये, उसे ‘पथिकृत्’ नामक अग्नि के लिये मिट्टी के आठ पुरवों में संस्कृत चरु के द्वारा होम करना चाहिये। जब सूतिकागृह की अग्नि, अग्निहोत्र की अग्नि का स्पर्श कर ले, तब मिट्टी के आठ पुरवों में संस्कृत पुरोडाश द्वारा ‘अग्निमान्’ नामक अग्नि को आहुति देनी चाहिये।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तगर्त मार्कण्डेयसमस्यापर्व में आंगिरसोपाख्यान विषयक दो सौ इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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