दशाधिकद्विशततम (210) अध्याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)
महाभारत: वन पर्व: दशाधिकद्विशततम अध्याय: श्लोक 15-21 का हिन्दी अनुवाद
आकाश, वायु, अग्रि, जल तथा पृथ्वी- ये पांच महाभूत हैं तथा शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध -ये क्रमश: उनके विशेष गुण हैं। उन शब्द आदि गुणों के भी अनेक गुण-भेद हैं, क्योंकि इन गुणों का परस्पर संक्रमण भी देखा जाता है। पहले-पहले के सभी गुण क्रमश: बाद वाले तीन गुणवान् भूतों (अग्रि, जल और पृथ्वी) मैं उपलब्ध होते हैं अर्थात् अग्नि में शब्द, स्पर्श और रूप; जल में शब्द, स्पर्श, रूप और रस तथा पृथ्वी में शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गन्ध पाये जाते हैं। इन पांच भूतों के अतिरिक्त छठा तत्व है चित्त, इसी को मन कहते हैं। सातवां तत्व बुद्धि है और उसके बाद आठवां अहंकार है। इनके सिवा पांच ज्ञानेन्द्रियां, प्राण और सत्व, रज, तम-इन सत्रह तत्वों का समूह अव्यक्त कहलाता है। पांच ज्ञानेन्द्रियां तथा मन और बुद्धि के जो व्यक्त और अव्यक्त विषय हैं, जो बुद्विरूपी गुहा में छिपे रहते हैं, उन्हें सम्मिलित करने से चौबीस तत्व होते हैं। इन तत्वों का समुदाय ही व्यक्त और अव्यक्त रूप गुण है। (यह सब-का-सब ब्रह्मस्वरूप है।) ब्राह्मण! इस प्रकार ये सब बातें मैंने तुम्हें बतायी हैं, अब और क्या सुनना चाहते हो।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत मार्कण्डेयसमस्यापर्व में ब्राह्मण माहात्म्य विषयक दो सौ दसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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