चतुरधिकद्विशततक (204) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )
महाभारत: वन पर्व: चतुरधिकद्विशततक अध्याय: श्लोक 40-45 का हिन्दी अनुवाद
सज्जनशिरोमणे! इस प्रकार मधुकैटभ-कुमार महादैत्य धुन्धु कुवलाश्व के हाथ से मारा गया और राजा कुवलाश्व की धुन्धुमार नाम से प्रसिद्धि हुई। तभी से वे नरेश अपने नाम के अनुसार वीरता आदि गुणों से युक्त हो भूमण्डल में विख्यात हो गये। युधिष्ठिर! तुमने मुझसे जो पूछा था, वह सारा धुन्धुमारोपाख्यान मैंने तुम से कह सुनाया। जिनके पराक्रम से इस उपाख्यान की प्रसिद्धि हुई है, उन नरेश का भी परिचय दे दिया। जो मनुष्य भगवान विष्णु के कीर्तनरूप इस पवित्र उपाख्यान को सुनता है, वह धर्मात्मा और पुत्रवान् होता है। जो पर्वों पर इस कथा को सुनता है, वह दीर्घायु तथा ऐश्वर्यशाली होता है। उसे रोग आदि का कुछ भी भय नहीं होता। उसकी सारी चिन्ताएं दूर हो जाती हैं।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत मार्कण्डेयसमास्यापर्व में धुन्धुमारोपाख्याय विषयक दो सौ चारवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|