महाभारत वन पर्व अध्याय 15 श्लोक 16-23

पंचदश (15) अध्‍याय: वन पर्व (अरण्‍य पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: पंचदश अध्याय: श्लोक 16-23 का हिन्दी अनुवाद


कुरुश्रेष्ठ! द्वारकापुरी के चारों ओर एक कोस तक के चारों ओर के कुएँ इस प्रकार जलशून्य कर दिये गये थे, मानो भाड़ हों और उतनी दूर की भूमि भी लौहकण्टक आदि से व्याप्त कर दी गयी थी। निष्पाप नरेश! द्वारका एक तो स्वभाव से ही दुर्गम्य, सुरक्षित और अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न है, तथापि उस समय इसकी विशेष व्यवस्था कर दी गयी थी।

भरतश्रेष्ठ! द्वारका नगर इन्द्र भवन की भाँति ही सुरक्षित, सुगुप्त और सम्पूर्ण आयुधों से भरा-पूरा है। राजन! सौभनिवासियों के साथ युद्ध होते समय वृष्णि और अंधकवंशी वीरों के उस नगर में कोई भी राजमुद्रा (पास) के बिना न तो बाहर निकल सकता था और न बाहर से नगर के भीतर ही आ सकता था।

कुरुनन्दन राजेन्द्र! वहाँ प्रत्येक सड़क और चौराहे पर बहुत-से हाथी सवार और घुड़सवारों से युक्त विशाल सेना उपस्थित रहती थी। महाबाहो! उस समय सेना के प्रत्येक सैनिक को पूरा-पूरा वेतन और भत्ता चुका दिया गया था। सबको नये-नये हथियार और पोशाकें दी गयी थीं और उन्हें विशेष पुरस्कार आदि देकर उनका प्रेम और भरोसा प्राप्त कर लिया गया था। कोई भी सैनिक ऐसा नहीं था, जिसे सोने-चाँदी के सिवा ताँबा आदि के वेतन के रूप में दिया जाता हो अथवा जिसे समय पर वेतन न प्राप्त हुआ हो। किसी भी सैनिक को दयावश सेना में भर्ती नहीं किया गया था। कोई भी ऐसा न था, जिसका पराक्रम बहुत दिनों से देखा न गया हो।

कमलनयन राजन्! जिसमें बहुत-से दक्ष मनुष्य निवास करते थे, उस द्वारका नगरी की रक्षा के लिये इस प्रकार की व्यवस्था की गयी थी। वह राजा उग्रसेन द्वारा भलीभाँति सुरक्षित थी।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगमन पर्व में सौभवध विषयक पंद्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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