चतुश्वत्वारिंशदधिकशततम (144) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: चतुश्वत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-28 का हिन्दी अनुवाद
भीमसेन ने कहा- 'पुरुषराज! महाराज! आप मन में खेद न करें। मैं स्वयं राजकुमारी द्रौपदी, नकुल, सहदेव और आपको भी ले चलूँगा। हिडिम्बा का पुत्र घटोत्कच भी महान पराक्रमी है। वह मेरे ही समान बलवान है और आकाश में चल-फिर सकता है। अनघ! आपकी आज्ञा होने पर वह हम सबको अपनी पीठ पर बिठाकर ले चलेगा।' वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! तदनन्तर धर्मराज की आज्ञा पाकर भीमसेन ने अपने राक्षसपुत्र का स्मरण किया। पिता के स्मरण करते ही धर्मात्मा घटोत्कच हाथ जोड़े हुए वहाँ उपस्थित हुआ। उस महाबाहु वीर ने पाण्डवों तथा ब्राह्मणों को प्रणाम करके उनके द्वारा सम्मानित हो अपने भयंकर पराक्रमी पिता भीमसेन से कहा- ‘महाबाहो! आपने मेरा स्मरण किया है और मैं शीघ्र ही सेवा की भावना से आया हूं, आज्ञा कीजिये; मैं आपका सब कार्य अवश्य ही पूर्ण करूंगा।' यह सुनकर भीमसेन ने राक्षस घटोत्कच को हृदय से लगा लिया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में लोमशतीर्थयात्रा के प्रसंग में गन्धमान प्रवेश विषयक एक सौ चौवालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|