द्विचत्वारिंशदधिकशततम (142) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: द्विचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 59-63 का हिन्दी अनुवाद
भूतल पर उद्धार करते हुए वे प्रलयकालीन अग्नि के समान उद्भासित होते हैं। इनके वक्ष:स्थल में स्पष्ट रूप से श्रीवत्स चिह्न प्रकाशित हो रहा है। देवताओ! ये रोग-शोक से रहित साक्षात भगवान ही वराह रूप से प्रकट हुए हैं, तुम सब लोग इनका दर्शन करो। लोमश जी कहते है- युधिष्ठिर! तदनन्तर देवताओं ने जाकर वराहरूपी परमात्मा श्रीविष्णु का दर्शन किया, उनकी महिमा सुनी और उनकी आज्ञा लेकर वे ब्रह्माजी को आगे करके जैसे आये थे, वैसे लौट गये। वैशम्पयान जी कहते हैं- जनमेजय! यह कथा सुनकर सब पांडव बड़े प्रसन्न हुए और लोमश जी के बताये हुए मार्ग से शीघ्रतापूर्वक आगे बढ़ गये।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में लोमशतीर्थयात्रा के प्रसंग में गन्धमादन प्रवेश विषयक एक सौ बयालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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