त्रयस्त्रिंशदधिकशततम (133) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
महाभारत: वन पर्व: त्रयस्त्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 23-30 का हिन्दी अनुवाद
तब राजा ने परीक्षा लेने के लिये कहा- जो पुरुष तीस अवयव, बारह अंश, चौबीस पर्व और तीन सौ साठ अरों वाले पदार्थ को जानता है-उसके प्रयोजन को समझता है, वह उच्च कोटि का ज्ञानी है। अष्टावक्र बोले- राजन! जिसमें बारह अमावस्या और बारह पूर्णिमारूपी चौबीस पर्व, ऋतुरूप छ: नाभि, मासरूप बारह अंश और दिनरूप तीन सौ साठ अरे हैं, वह निरन्तर घूमने वाला संवत्सररूप कालचक्र आपकी रक्षा करे। राजा ने पूछा- जो दो घोड़ियों की भाँति संयुक्त रहती हैं एवं जो बाज पक्षी की भाँति हठात गिरने वाली हैं, उन दोनों के गर्भ को देवताओं में से कौन धारण करता है तथा वे दोनों किस गर्भ को उत्पन्न करती हैं? अष्टावक्र बोले- राजन! वे दोनों तुम्हारे शत्रुओं के घर पर भी कभी न गिरें। वायु जिसका सारथी है, वह मेघरूप देव ही इन दोनों के गर्भ को धारण करने वाला है और ये दोनों उस मेघरूप गर्भ को उत्पन्न करने वाले हैं।[1]। राजा ने पूछा- सोते समय कौन नेत्र नहीं मूंदता, जन्म लेने के बाद किसमें गति नहीं होती, किसके हृदय नहीं होता और कौन वेग से बढ़ता है। अष्टावक्र बोले- मछली सोते समय भी आंख नहीं मूंदती, अण्डा उत्पन्न होने पर चेष्टा नहीं करता, पत्थर के हृदय नहीं होता और नदी वेग से बढ़ती है। राजा ने कहा- ब्रह्म! आपकी शक्ति तो देवताओं के समान है, मैं आपको मनुष्य नहीं मानता; आप बालक भी नहीं हैं। मैं तो आपको वृद्ध ही समझता हूँ। वाद-विवाद करने में आपके समान दूसरा कोई नहीं है, अत: आपको यज्ञमण्डप में जाने के लिये द्वार प्रदान करता हूँ। यही बन्दी हैं (जिनसे आप मिलना चाहते थे)।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में लोमशतीर्थयात्रा के प्रसंग में अष्टावक्रीयोपाख्यान विषयक एक सौ तैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यहाँ अष्टावक्र जी ने परोक्ष रूप से ही प्रश्न का उत्तर दिया है। भाव यह है कि दो तत्व, जिनको वैदिक भाषा में रयि और प्राण नाम से कहा है ( देखिये प्रश्नोपनिषद 1 । 4 ) एवं अंग्रेजी में जिनको पोजिटिव (अनुलोम) और निगेटिव (प्रतिलोम) कहते हैं, स्वभाव से ही संयुक्त रहने वाले हैं। इनका ही व्यक्त रूप विद्युत शक्ति है। उसे गर्भ की भाँति मेघ धारण किये रहता है। संघर्ष से वह प्रकट होती है और आकर्षण होने पर बाज की भाँति गिरती है। जहाँ गिरती है, वहाँ सबको भस्म कर देती है; इसलिये यह कहा गया कि वह कभी आपके शत्रुओं के घर पर भी न पड़े। इन दो तत्वों की संयुक्त शक्ति से ही मेघ की उत्पत्ति होती है। इसलिये यह कहा गया कि उस मेघरूप गर्भ को ये उत्पन्न करते हैं।
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