महाभारत वन पर्व अध्याय 12 श्लोक 58-77

द्वादश (12) अध्‍याय: वन पर्व (अरण्‍य पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 58-77 का हिन्दी अनुवाद


लोक, लोकपाल, नक्षत्र, दसों दिशाएँ, आकाश, चन्द्रमा और सूर्य सब आप में प्रतिष्ठित हैं। महाबाहो! भूलोक के प्राणियों की मृत्युपरवशता, देवताओं की अमरता तथा सम्पूर्ण जगत का कार्य सब कुछ आप में ही प्रतिष्ठित है। मधुसूदन! मैं आपके प्रति प्रेम होने के कारण आपसे अपना दुःख निवेदन करूँगी; क्योंकि दिव्य और मानव जगत में जितने भी प्राणी हैं; उन सबके ईश्वर आप ही हैं। भगवान कृष्ण! मेरे-जैसी स्त्री जो कुन्तीपुत्रों की पत्नी, आपकी सखी और धृष्टद्युम्न जैसे वीर की बहिन हो, क्या किसी तरह सभा में (केश पकड़कर) घसीटकर लायी जा सकती है? मैं रजस्वला थी, मेरे कपड़ों पर रक्त के छींटे लगे थे, शरीर पर एक ही वस्त्र था और लज्जा एवं भय से मैं थर-थर काँप रही थी। उस दशा में मुझ दु:खिनी अबला को कौरवों की सभा में घसीटकर लाया गया था। भरी सभा में राजाओं की मण्डली के बीच अत्यन्त रक्तस्राव हाने के कारण मैं रक्त से भीगी जा रही थी। उस अवस्था में मुझे देखकर धृतराष्ट्र के पापात्मा पुत्रों ने जोर-जोर से हँसकर मेरी हँसी उड़ायी।

मधुसूदन]! पाण्डवों, पांचालों और वृष्णिवंशी वीरों के जीते-जी धृतराष्ट्र के पुत्रों ने दासीभाव से मेरा उपभोग करने की इच्छा प्रकट की। श्रीकृष्ण! मैं धर्मतः भीष्म और धृतराष्ट्र दोनों की पुत्रवधु हूँ; तो भी उनके सामने ही बलपूर्वक दासी बनायी गयी। मैं तो संग्राम में श्रेष्ठ इन महाबली पाण्डवों की निन्दा करती हूँ; जो अपनी यशस्विनी धर्मपत्नी को शत्रुओं द्वारा सतायी जाती हुई देख रहे थे। जनार्दन! भीमसेन के बल को धिक्कार है, अर्जुन के गाण्डीव धनुष को भी धिक्कार है, जो उन नराधर्मों द्वारा मुझे अपमानित होती देखकर भी सहन करते रहे। सत्पुरुषों द्वारा सदा आचरण में लाया हुआ यह धर्म का सनातन मार्ग है कि निर्बल पति भी अपनी पत्नी की रक्षा करते हैं। पत्नी की रक्षा करने से अपनी संतान सुरक्षित होती है और संतान की रक्षा होने पर अपने आत्मा की रक्षा होती है। अपनी आत्मा ही स्त्री के गर्भ से जन्म लेती है; इसीलिये वह 'जाया' कहलाती है। पत्नी को भी अपने पति की रक्षा इसीलिये करनी चाहिये कि यह किसी प्रकार मेरे उदर से जन्म ग्रहण करे। ये अपनी शरण में आने पर कभी किसी का भी त्याग नहीं करते; किन्तु इन्हीं पाण्डवों ने मुझ शरणागत अबला पर तनिक भी दया नहीं की।

जनार्दन! इन पाँच पतियों से उत्पन्न हुए मेरे महाबली पाँच पुत्र हैं। उनकी देखभाल के लिये भी मेरी रक्षा आवश्यक थी। युधिष्ठिर से प्रतिविन्ध्य, भीमसेन से सुतसोम, अर्जुन से श्रुतकीर्ति, नकुल से शतानीक और छोटे पाण्डव सहदेव से श्रुतकर्मा का जन्म हुआ है। ये सभी कुमार सच्चे पराक्रमी हैं। श्रीकृष्ण! आपका पुत्र प्रद्युम्न जैसा शूरवीर है, वैसे ही मेरे महारथी पुत्र भी हैं। ये धनुर्विद्या में श्रेष्ठ तथा शत्रुओं द्वारा युद्ध में अजेय हैं तो भी दुर्बल धृतराष्ट्र-पुत्रों का अत्याचार कैसे सहन करते हैं? अधर्म से सारा राज्य ग्रहण कर लिया गया, सब पाण्डव दास बना दिये गये और मैं एकवस्त्रधारिणी रजस्वला होने पर भी सभा में घसीटकर लायी गयी। मधुसूदन! अर्जुन के पास जो गाण्डीव धनुष है, उस पर अर्जुन, भीम अथवा आपके सिवा दूसरा कोई प्रत्यन्चा भी नहीं चढ़ा सकता (तो भी ये मेरी रक्षा न कर सके)।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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