महाभारत वन पर्व अध्याय 127 श्लोक 17-21

सप्‍तविंश‍त्‍यधि‍कशततम (127) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

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महाभारत: वन पर्व: सप्‍तविंश‍त्‍यधि‍कशततम अध्‍याय: श्लोक 19-21 का हिन्दी अनुवाद


पुरोहि‍त ने कहा- सोमक! ऐसा कर्म है, जि‍ससे तुम्‍हें सौ पुत्र हो सकते हैं। यदि‍ तुम उसे कर सको तो बताऊँगा।

सोमक ने कहा- 'भगवन! आप वह कर्म मुझे बताइये, जि‍ससे सौ पुत्र हो सकते हैं। वह करने योग्‍य हो या न हो, मेरे द्वारा उसे कि‍या हुआ ही जानि‍ये।'

पुरोहि‍त ने कहा- राजन! मैं एक यज्ञ आरम्‍भ करवाऊँगा, उसमें तुम अपने पुत्र जन्‍तु की आहुति‍ देकर यजन करो। इससे शीघ्र ही तुम्‍हें सौ परम सुन्‍दर पुत्र प्राप्‍त होंगे। जि‍स समय उसकी चर्बी की आहूति‍ दी जायेगी, उस समय उसके धूंए को सूँघ लेने पर सब माताएं (गर्भवती हो) आपके लि‍ये अत्‍यन्त पराक्रमी पुत्रों को जन्‍म देंगी।

आपका पुत्र जन्तु पुन: अपनी माता के ही पेट से उत्‍पन्‍न होगा। उस समय उसकी बायीं पसली में एक सुनहरा चि‍ह्न होगा।


इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रापर्व में लोमशतीर्थयात्रा के प्रसंग में जन्‍तुपाख्‍यान वि‍षयक एक सौ सत्‍ताईसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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