सप्तम (7) अध्याय: मौसल पर्व
महाभारत: मौसल पर्व: सप्तम अध्याय: श्लोक 61-76 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर अर्जुन युद्ध से निवृत्त हो गये और बोले- "यह अस्त्र ज्ञान आदि कुछ भी नित्य नहीं है।" फिर अपहरण से बची हुई स्त्रियों और जिनका अधिक भाग लूट लिया गया था, ऐसे बचे-खुचे रत्नों को साथ लेकर परम बुद्धिमान अर्जुन कुरुक्षेत्र में उतरे। इस प्रकार अपहरण से बची हुई वृष्णि वंश की स्त्रियों को ले आकर कुरुनन्दन अर्जुन ने उनको जहाँ-तहाँ बसा दिया। कृतवर्मा के पुत्र को और भोजराज के परिवार की अपहरण से बची हुई स्त्रियों को नरश्रेष्ठ अर्जुन ने मार्तिकावत नगर में बसा दिया। तत्पश्चात वीरविहीन समस्त वृद्धों, बालकों तथा अन्य स्त्रियों को साथ लेकर वे इन्द्रप्रस्थ आये और उन सबको वहाँ का निवासी बना दिया। धर्मात्मा अर्जुन ने सात्यकि के प्रिय पुत्र यौयुधानि को सरस्वती के तटवर्ती देश का अधिकारी एवं निवासी बना दिया और वृद्धों तथा बालकों को उसके साथ कर दिया। इसके बाद शत्रुवीरों का संहार करने वाले अर्जुन ने वज्र को इन्द्रप्रस्थ का राज्य दे दिया। अक्रूर जी की स्त्रियाँ वज्र के बहुत रोकने पर भी वन में तपस्या करने के लिये चली गयीं। रुक्मिणी, गांधारी, शैव्या, हैमवती तथा जाम्बवती देवी ने पतिलोक की प्राप्ति के लिये अग्नि में प्रवेश किया। राजन! श्रीकृष्णप्रिया सत्यभामा तथा अन्य देवियाँ तपस्या का निश्चय करके वन में चली गयीं। जो-जो द्वारकावासी मनुष्य पार्थ के साथ आये थे, उन सबका यथायोग्य विभाग करके अर्जुन ने उन्हें वज्र को सौंप दिया। इस प्रकार समयोचित व्यवस्था करके अर्जुन नेत्रों से आँसू बहाते हुए महर्षि व्यास के आश्रम पर गये और वहाँ बैठे हुए महर्षि का उन्होंने दर्शन किया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत मौसल पर्व में अर्जुन द्वारा वृष्णिवंश की स्त्रियों और बालकों का आनयन विषयक सातवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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