एकोनशततम (99) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनशततम अध्याय: श्लोक 23-30 का हिन्दी अनुवाद
प्रजानाथ! वे सारे वाहन भारी चिन्ता में पड़कर मल-मूल करने लगे। भरतश्रेष्ठ! भयंकर गर्जना करने वाले नरभक्षी राक्षसों के महान् शब्द सुनायी पड़ते थे; परंतु उनके बोलने वाले अदृश्य थे। चारों ओर से गीदड़ और बलशायी कौए वहाँ टूटे पड़ते थे। आर्य! वहाँ कुत्ते भी नाना प्रकार की आवाज में भूँकते देखे जाते थे। बड़ी-बड़ी प्रज्वलित उल्काएँ सूर्यदेव से टकराकर महान् भय की सूचना देती हुई सहसा पृथ्वी पर गिर रही थीं। उस महान् संग्राम में पाण्डव तथा कौरव पक्ष की विशाल सेनाएँ शंख और मृदंग की ध्वनि से उसी प्रकार काँप रही थीं, जैसे वायु के वेग से समूचा वन प्रान्त हिलने लगता है। उस अमंगलजनक मुहूर्त में नरेशों, हाथियों और अश्वों से परिपूर्ण हो परस्पर आक्रमण करती हुई उभय पक्ष की उन विशाल सेनाओं का भयंकर शब्द वायु से विक्षुब्ध हुए समुद्रों की गर्जना के समान जान पड़ता था।
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में परस्पर व्यूह रचना के पश्चात् उत्पातदर्शनविषयक निन्यानबेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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