पंचाशीतितम (85) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: पंचाशीतितम अध्याय: श्लोक 15-27 का हिन्दी अनुवाद
'वीर! तुमने अपने पिता के सामने प्रतिज्ञापूर्वक मुझसे यह कहा था कि 'मैं महान व्रतधारी भीष्म को निर्मल सूर्य के समान तेजस्वी बाणसमूहों द्वारा अवश्य मार डालूंगा, यह बात मैं सत्य कहता हूँ।’ ऐसी प्रतिज्ञा तुमने की थी; परंतु तुम इस प्रतिज्ञा को सफल नहीं करते हो। कारण कि युद्ध में देवव्रत भीष्म का वध नहीं कर रहे हो। झूठी प्रतिज्ञा करने वाला न बनो। अपने धर्म, कुल और यश की रक्षा करो। देखो! जैसे यमराज समयानुसार उपस्थित होकर क्षणभर में देहधारी का विनाश कर देते हैं, उसी प्रकार ये युद्ध में भयंकर वेगशाली भीष्म अत्यन्त प्रचण्ड वेग वाले बाण समूहों के द्वारा मेरी समस्त सेनाओं को कितना संताप दे रहे हैं। युद्ध में शान्तनुनन्दन भीष्म ने तुम्हारा धनुष काटकर तुम्हें पराजित कर दिया; फिर भी तुम उनकी ओर से निरपेक्ष हो रहे हो। अपने सगे भाइयों को छोड़कर कहां जाओंगे? यह कायदा तुम्हारे अनुरूप नहीं हैं। द्रुपदकुमार! अनन्त पराक्रमी भीष्म को तथा उनके डर से इस प्रकार हतोत्साह होकर भागती हुई मेरी इस सेना को देखकर निश्चय ही तुम डर गये हो; क्योंकि तुम्हारे मुख की कान्ति कुछ ऐसी ही अप्रसन्न दिखायी देती है। वीर! नरवीर अर्जुन कहीं महायुद्ध में फंसे हुए है। उनका इस समय पता नहीं है। ऐसे समय में तुम आज भूमण्डल के विख्यात वीर होकर भीष्म से भय कैसे कर रहे हो?' राजन! धर्मराज के इस वचन में प्रत्येक अक्षर रूखेपन से भरा हुआ था। उनके द्वारा उन्होंने कितनी ही मन के विपरीत बातें कहीं थी, तथापि उस वचन को सुनकर महामना शिखण्डी ने इसे अपने लिये आदेश माना और तुरंत ही भीष्म का वध करने के लिये सचेष्ट हो गया। शिखण्डी को बड़े वेग से आते और भीष्म पर धावा करते देख शल्य ने अत्यन्त दुर्जय एवं भयंकर अस्त्र से उसे रोक दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भीष्म पितामह ने शिखण्डी को अपने ऊपर प्रहार करने के लिये आया देखकर ही उसके धनुष को काट दिया था, उसके शरीर पर कोई प्रहार नहीं किया। अत: कोई दोष नहीं है।
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