महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 84 श्लोक 21-42

चतुरशीतितम (84) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: चतुरशीतितम अध्याय: श्लोक 21-42 का हिन्दी अनुवाद


राजन! शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य ने युद्ध में उन सब बाणों को काटकर सावधानी के साथ युद्ध करने वाले चेकितान को पंख वाले बाणों से बींध डाला। आर्य! फिर दूसरे भल्ल से उसका धनुष काट दिया और अपने हाथों की फुर्ती दिखाते हुए समर में उसके सारथि को भी मार गिराया। राजन! तदनन्तर चेकितान के चारों घोड़ों और दोनों पृष्ठ रक्षकों को भी कृपाचार्य ने मार डाला। तब सात्वतवंशी चेकितान ने रथ से कूदकर तुरंत ही गदा हाथ में ले ली। गदाधारियों में श्रेष्ठ चेकितान ने उस वीरघातिनी गदा से कृपाचार्य के घोड़ों को मारकर उनके सारथि को भी धराशायी कर दिया। तब कृपाचार्य ने भूमि पर ही खडे़ होकर चेकितान को सोलह बाण मारे। वे बाण चेकितान को छेदकर धरती में समा गये। तब क्रोध में भरे हुए चेकितान ने कृपाचार्य के वध की इच्छा से उन पर पुन: वैसे ही गदा का प्रहार किया, जैसे इन्द्र वृत्रासुर पर प्रहार करते हैं। उस निर्मल एवं लोहे की बनी हुई विशाल गदा को अपने ऊपर आती देख कृपाचार्य ने अनेक सहस्र बाणों द्वारा दूर गिरा दिया।

भारत! तब चेकितान ने क्रोधपूर्वक तलवार खींच ली और बड़ी फुर्ती के साथ कृपाचार्य पर धावा किया। राजन! यह देख कृपाचार्य ने भी धनुष फेंककर तलवार हाथ में ले ली और पूरी सावधानी के साथ वे बड़े वेग से चेकितान की ओर दौडे़। वे दोनों ही बलवान थे। दोनों ने ही उत्तम खड्ग धारण कर रखे थे। अत: अपनी उन अत्यन्त तीखी तलवारों से वे एक-दूसरे को काटने लगे। तलवार की गहरी चोट से घायल होकर वे दोनों पुरुषश्रेष्ठ सम्पूर्ण भूतों की निवासभूत पृथ्वी पर गिर पड़े। उनके सारे अंगों में मूर्छा व्याप्त हो रही थी। दोनों ही अधिक परिश्रम के कारण अचेत हो गये थे। उस समय युद्ध में उन्मत्त होकर लड़ने वाला करकर्ष चेकितान को वैसी अवस्था-में पड़ा देख सौहार्द के नाते बड़े वेग से दौड़ा और सम्पूर्ण सेना के देखते-देखते उसने उन्हें अपने रथ पर चढ़ा लिया। प्रजानाथ! इसी प्रकार आपके साले शूरवीर शकुनि ने रथियों में श्रेष्ठ कृपाचार्य को शीघ्र ही अपने रथ पर बैठा लिया।

राजन्! दूसरी ओर महाबली धृष्टकेतु ने क्रोध में भरकर नब्बे बाणों से शीघ्रतापूर्वक भूरिश्रवा की छाती में चोट पहुँचायी। महाराज! छाती में धंसे हुए उन बाणों से भूरिश्रवा उसी प्रकार शोभा पाने लगा, जैसे दोपहर के समय सूर्य अपनी किरणों द्वारा अधि‍क प्रकाशित होता है। तब भूरिश्रवा ने समरभूमि में उत्तम सायकों द्वारा महारथी धृष्टकेतु के घोड़ों और सारथि को मारकर उन्हें रथहीन कर दिया। भूरिश्रवा ने धृष्टकेतु को घोड़ों और सारथि के मारे जाने से रथहीन हुआ देख युद्धस्थल में बाणों की बड़ी भारी वर्षा करके ढक दिया। आर्य! तत्पश्चात महामना धृष्टकेतु उस रथ को छोड़कर शतानीक की सवारी पर जा बैठे।

राजन! इसी समय चित्रसेन, विकर्ण तथा दुर्मर्षण- इन तीन रथियों ने सोने के कवच बांधकर सुभद्राकुमार अभिमन्यु पर धावा किया। नरेश्वर! तब उनके साथ अभिमन्यु का भयंकर युद्ध आरम्भ हुआ, ठीक उसी तरह, जैसे शरीर का वात, पित्त और कफ- इन तीनों धातुओं के साथ युद्ध होता रहता हैं। राजन! उस महासमर में आपके पुत्रों को रथहीन करके पुरुषसिंह अभिमन्यु ने उस समय भीम की प्रतिज्ञा का स्मरण करके उनका वध नहीं किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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