महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 59 श्लोक 19-36

एकोनषष्टितम (59) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 19-36 का हिन्दी अनुवाद


दूसरे सैनिक यों चिल्ला रहे थे- ‘अरे आओ, मेरे पास आओ, क्यों डरे हुए हो? कहाँ जाओगे? मैं संग्राम में डटा हुआ हूँ। तुम भय न करो’। वहाँ शान्तनुनन्दन भीष्म अपने धनुष को मण्डलाकार करके विषधर सर्पों के समान भयंकर एवं प्रज्वलित बाणों की निरन्तर वर्षा कर रहे थे। भरतश्रेष्ठ! उत्तम व्रत का पालन करने वाले भीष्म सम्पूर्ण दिशाओं को बाणों से व्याप्त करते हुए पाण्डव-पक्षीय रथियों को अपना नाम सुना-सुनाकर मारने लगे। राजन! उस समय भीष्म अपने हाथ की फुर्ती दिखाते हुए रथ की बैठक पर नृत्य-सा कर रहे थे। घूमते हुए अलात-चक्र की भाँति वे यत्र-तत्र सर्वत्र दिखायी देने लगे। युद्ध में शूरवीर भीष्म यद्यपि अकेले थे, तथापि सृंजयों सहित पाण्‍डवों को वे अपनी फुर्ती के कारण कई लाख व्यक्तियों के समान दिखाई दिये। लोगों को ऐसा मालूम हो रहा था कि ऋणक्षेत्र में भीष्म जी ने माया से अपने को अनेक रूपों में प्रकट कर लिया है। जिन लोगों ने उन्हें पूर्व दिशा में देखा था, उन्हीं लोगों को आंख फिरते ही वे पश्चिम में दिखायी देते। प्रभो! बहुतों ने उन्‍हें उत्तर दिशा में देखकर तत्काल ही दक्षिण दिशा में भी देखा। इस प्रकार समरभूमि में शूरवीर गंगानन्दन भीष्म सब ओर दिखायी दे रहे थे। पाण्‍डवों में से कोई भी उन्‍हें देख नहीं पाता था। सब लोग भीष्म जी के धनुष से छूटे हुए बहुसंख्य बाणों को ही देखते थे।

उस समय रणक्षेत्र में अद्भुत कर्म करते हुए आपके ताऊ भीष्म अमानुषरूप विचरते तथा पाण्डव सेना का संहार करते थे। वहाँ अनेक प्रकार से मनुष्य उनके सम्बन्ध में नाना प्रकार की बातें कर रहे थे। युद्ध में मनुष्‍यों, हाथियों और घोड़ों के शरीरों पर चलाया हुआ भीष्म को कोई भी बाण व्यर्थ नहीं होता। एक तो उनके पास बाण बहुत थे और दूसरे कि वह बड़ी फुर्ती से चलाते थे। भीष्म कंकपत्र से युक्त बहुसंख्यक तीखे बाणों को युद्ध में बिखेर रहे थे। वे एक पंखयुक्त सीधे बाण से लोहे की झुल से युक्त हाथी को भी विदीर्ण कर डालते थे। जैसे इन्द्र महान पर्वत को अपने वज्र से विदीर्ण कर देते हैं।

आपके ताऊ भीष्म अच्छी तरह से छोडे़ हुए एक ही नाराच के द्वारा एक जगह बैठे हुए दो-तीन हाथी-सवारों को कवच धारण किये होने पर भी छेद डालते थे। जो कोई भी योद्धा नरश्रेष्ठ भीम के सम्मुख आ जाता, वह मुझे एक ही मुहुर्त में खड़ा दिखायी देकर उसी क्षण धरती पर लोटता दिखायी देता था। इस प्रकार अतुल पराक्रमी भीष्म के द्वारा मारी जाती हुई धर्मराज युधिष्ठिर की एक विशालवाहिनी सहस्रों भागों में बिखर गयी। उनकी बाण-वर्षा से संतप्त हो पाण्‍डवों की वह महती सेना श्रीकृष्ण, अर्जुन और शिखण्डी के देखते-देखते कांपने लगी। वे सब वीर वहाँ मौजूद होते हुए भी भीष्म के बाणों से अत्यन्त पीड़ित होकर भागते हुए अपने महारथियों को रोकने में समर्थ न हो सके। महाराज! महेन्द्र के समान पराक्रमी भीष्म की मार खाकर वह विशाल सेना इस प्रकार तितर-बितर हुई कि उसके दो-दो सैनिक भी एक साथ नहीं भाग सकते थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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