पंचाशत्तम (50) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 20-41 का हिन्दी अनुवाद
युधिष्ठिर को शोक से आतुर और दुःख से व्यथितचित्त जानकर गोविन्द ने समस्त पाण्डवों का हर्ष बढ़ाते हुए कहा- ‘भरतश्रेष्ठ तुम शोक न करो। इस प्रकार शोक करना तुम्हारे योग्य नहीं है। तुम्हारे शूरवीर भाई सम्पूर्ण लोकों में विख्यात धनुर्धर हैं। राजन्! मैं भी तुम्हारा प्रिय करने वाला ही हूँ। नृपश्रेष्ठ! महायशस्वी सात्यकि, विराट, द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न तथा सेनासहित ये सम्पूर्ण नरेश आपके कृपाप्रसाद की प्रतीक्षा करते हैं। महाराज! ये सब-के-सब आपके भक्त हैं। ये द्रुपदपुत्र महाबली धृष्टद्युम्न भी सदा आपका हित चाहते हैं और आपके प्रिय साधन में तत्पर होकर ही इन्होंने प्रधान सेनापति का गुरुतर भार ग्रहण किया है। महाबाहो! निश्चय ही इन समस्त राजाओं के देखते-देखते यह शिखण्डी भीष्म का वध कर डालेगा, इसमें तनिक भी संदेह नही है’। यह सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण के सुनते ही उस सभा में महारथी धृष्टद्युम्न से कहा- ‘आदरणीय वीर धृष्टद्युम्न! मैं तुमसे जो कुछ कहता हूं, इसे ध्यान देकर सुनो। मेरे कहे हुए वचनों को तुम्हें उल्लंघन नहीं करना चाहिये। तुम मेरे सेनापति हो, भगवान श्रीकृष्ण के समान पराक्रमी हो। पुरुषरत्न! पूर्वकाल में भगवान कार्तिकेय जिस प्रकार देवताओं के सेनापति हुए थे, उसी प्रकार तुम भी पाण्डवों के सेनानायक होओ’। युधिष्ठिर का यह कथन सुनकर समस्त पाण्डव और महारथी भूपालगण सब-के-सब ‘साधु-साधु’ कहकर उनके इन वचनों की सराहना करने लगे। तत्पश्चात् राजा युधिष्ठिर ने पुनः महाबली धृष्टद्युम्न से कहा- ‘पुरुषसिंह! तुम पराक्रम करके कौरवों का नाश करो। मारिष! नरश्रेष्ठ! मैं, भीमसेन, श्रीकृष्ण, माद्रीकुमार नकुल, सहदेव, द्रौपदी के पांचों पुत्र तथा अन्य प्रधान-प्रधान भूपाल कवच धारण करके तुम्हारे पीछे-पीछे चलेंगे’। तब धृष्टद्युम्न ने सबका हर्ष बढ़ाते हुए कहा- ‘पार्थ! मुझे भगवान शंकर ने पहले ही द्रोणाचार्य का काल बनाकर उत्पन्न किया है। पृथ्वीपते! आज समरांगण में मैं भीष्म, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, शल्य तथा जयद्रथ- इन समस्त अभिमानी योद्धाओं का सामना करूंगा।' यह सुनकर युद्ध के लिये उन्मत्त रहने वाले महान् धनुर्धर पाण्डवों ने उच्चस्वर में सिंहनाद किया तथा शत्रुसुदन नृपश्रेष्ठ द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न के इस प्रकार युद्ध के लिये उद्यत होने पर कुन्तीकुमार युधिष्ठिर ने सेनापति द्रुपदकुमार से पुनः इस प्रकार कहा- ‘सेनापति! क्रौंचारुण नामक व्यूह समस्त शत्रुओं का संहार करने वाला है जिसे बृहस्पति ने देवासुर-संग्राम के अवसर पर इन्द्र को बताया था। शत्रुसेना का विनाश करने वाले उस क्रोचारूप व्यूह का तुम यथावत् रूप से निर्माण करो। आज समस्त राजा कौरवों के साथ उस अदृष्टपूर्व व्यूह को अपनी आंखों से देखे’। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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