एकोनपंचाशत्तम (49) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 40-53 का हिन्दी अनुवाद
राजन्! भीष्म ने समरभूमि में सव्यसाची अर्जुन को छोड़कर सेना से घिरे हुए पांचालराज द्रुपद पर धावा किया और और अपने प्रिय सम्बन्धी पर बहुत-से बाणों की वर्षा की। जैसे ग्रीष्म ऋतु में आग लगने से सारे वन दग्ध हो जाते हैं, उसी प्रकार द्रुपद की सारी सेनाएं भीष्म के बाणों से दग्घ दिखायी देने लगीं। उस समय भीष्म रणभूमि में धूमरहित अग्नि के समान खडे़ थे। जैसे दुपहरी में अपने तेज से तपते हुए सूर्य की ओर देखना कठिन है, उसी प्रकार पाण्डव-सेना के सैनिक भीष्म की ओर दृष्टिपात करने में भी असमर्थ हो गये। पाण्डव योद्धा भय से पीड़ित हो सब ओर देखने लगे परन्तु सर्दी से पीड़ित हुई गौओं की भाँति उन्हें अपना कोई रक्षक नहीं मिला। राजन्! गंगानन्दन भीष्म के बाणों से पीड़ित हुई वह युधिष्ठिर की (श्वेत-परिधानविभूषित) सेना सिंह के द्वारा सतायी हुई सफेद गाय के समान प्रतीत होने लगी। भारत! पाण्डव-सेना के सैनिक बहुत-से मारे गये, बहुत से भाग गये, कितने रौंद डाले गये और कितने ही उत्साह-शून्य हो गये। इस प्रकार पाण्डव दल में बड़ा हाहाकार मच गया था। उस समय शान्तनुनन्दन भीष्म अपने धनुष को खींचकर गोल बना देते और उसके द्वारा विषैले सर्पों की भाँति भयंकर प्रज्वलित अग्रभाग वाले बाणों की निरन्तर वर्षा करते थे। भारत! नियमपूर्वक व्रतों का पालन करने वाले भीष्म सम्पूर्ण दिशाओं में बाणों से एक रास्ता बना देते और पाण्डव रथियों को चुन-चुनकर-उनके नाम ले-लेकर मारते थे। इस प्रकार सारी सेना मथित हो उठी, व्यूह भंग हो गया और सूर्य अस्ताचल को चले गये उस समय अंधेरे में कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था। भरतश्रेष्ठ! इधर, उस महान् युद्ध में भीष्म का वेग अधिकाधिक प्रचण्ड होता जा रहा था, यह देख कुन्ती के पुत्रों ने अपनी सेनाओं को युद्धक्षेत्र से पीछे हटा लिया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में शंख का युद्ध तथा प्रथम दिन के युद्ध का उपसंहारविषयक उनचासवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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