महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 49 श्लोक 19-39

एकोनपंचाशत्तम (49) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 19-39 का हिन्दी अनुवाद


संजय! द्रुपद के परम बुद्धिमान पुत्र बलवान् धृष्टद्युम्न ने श्वेत के युद्ध में मारे जाने पर क्या किया? पहले भी कौरवों द्वारा पाण्डवों का अपराध हुआ है उससे तथा सेनापति के वध से महामना पाण्डवों के हृदय में आग-सी लग गयी होगी, यह मेरा विश्वास है। दुर्योधन के कारण पाण्डवों के मन में जो क्रोध है, उसका चिन्तन करके मुझे न तो दिन में शांति मिलती है, न रात्रि में ही। संजय! वह महायुद्ध किस प्रकार हुआ, यह सब मुझे बताओ।

संजय ने कहा- राजन्! स्थिर होकर सुनिये। इस युद्ध के होने में सबसे बड़ा अन्याय आपका ही है। इसका सारा दोष आपको दुर्योधन के माथे नहीं मढ़ना चाहिये। जैसे पानी की बाढ़ निकल जाने पर पुल बांधने का प्रयास किया जाय अथवा घर में आग लग जाने पर उसे बुझाने के लिये कुआं खोदने की चेष्टा की जाय, उसी प्रकार आपकी यह समझ है। उस भयंकर दिन के पूर्वभाव का अधिकांश व्यतीत हो जाने पर आपके और पाण्डवों के सैनिकों में पुनः युद्ध आरम्भ हुआ।

विराट के सेनापति श्वेत को मारा गया और राजा शल्य को कृतवर्मा के साथ रथ पर बैठा हुआ देख शंख क्रोध से जल उठा, मानो अग्नि में घी की आहुति पड़ गयी हो। उस बलवान वीर ने इन्द्रधनुष के समान अपने विशाल शरासन को कानों तक खींचकर मद्रराज शल्य को युद्ध में मार डालने की इच्छा से उन पर धावा किया। विशाल रथ सेना के द्वारा सब ओर से घिरकर बाणों की रक्षा करते हुए उसने शल्य के रथ पर आक्रमण किया। मतवाले हाथी के समान पराक्रम प्रकट करने वाले शंख को धावा करते देख आपके सात रथियों ने मौत के दांतों में फँसे हुए मद्रराज शल्य को बचाने की इच्छा रखकर उन्हें चारों और से घेर लिया। राजन्! उन रथियों के नाम ये हैं- कोसलनरेश बृहद्बल, मगधदेशीय जयत्सेन, शल्य के प्रतापी पुत्र रुक्मरथ, अवन्ति के राजकुमार विन्द और अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण तथा बृहत्क्षत्र के पुत्र सिंधुराज जयद्रथ

इन महामना वीरों के फैलाये हुए अनेक रूप-रंग के विचित्र धनुष बादलों में बिजलियों के समान दष्टिगोचर हो रहे थे। उन सब ने शंख के मस्तक पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी, मानो ग्रीष्म ऋतु के अन्त में वायु द्वारा उठाये हुए मेघ पर्वत पर जल बरसा रहे हों। उस समय महान् धनुर्धर सेनापति शंख ने कुपित होकर तेज किये हुए भल्ल नाम सात बाणों द्वारा उन सातों रथियों के धनुष काटकर गर्जना की। तदनन्तर महाबाहु भीष्म ने मेघ के समान गर्जना करके चार हाथ लंबा धनुष लेकर रणभूमि में शंख पर धावा किया। उस समय महाधनुर्धर महाबली भीष्म को युद्ध के लिये उद्यत देख पाण्डव सेना वायु के वेग से डगमग होने वाली नौका की भाँति काँपने लगी। यह देख अर्जुन तुरन्त ही शंख के आगे आ गये। उनके आगे आने का उद्देश्य यह था कि आज भीष्म के हाथ से शंख को बचाना चाहिये। फिर तो महान् युद्ध आरम्भ हुआ। उस समय रणक्षेत्र में जूझने वाले योद्धाओं का महान हाहाकार सब ओर फेल गया। तेज के साथ तेज टक्कर ले रहा है, यह कहते हुए सब लोग बड़े विस्मय में पड़ गये। भरतश्रेष्ठ! उस समय राजा शल्य ने हाथ में गदा लिये अपने विशाल रथ से उतर कर शंख के चारों घोड़ों को मार डाला।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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