महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 17 श्लोक 22-39

सप्तदश (17) अध्याय: भीष्म पर्व (श्रीमद्भगवतद्गीता पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तदश अध्याय: श्लोक 22-39 का हिन्दी अनुवाद


श्रुतायुध, चित्रसेन, पुरुमित्र, विविंशति, शल्य, भूरिश्रवा तथा महारथी विकर्ण- ये सात महाधनुर्धर वीर रथों पर आरूढ़ हो सुन्‍दर कवच धारण किये द्रोणपुत्र अश्वत्थामा को अपने आगे रखकर भीष्म आगे आगे चल रहे थे। इन सबके जाम्‍बूनद सुवर्ण बने हुए अन्‍यन्‍त उँचे ध्‍वज इनके श्रेष्ठ रथों की शोभा बढ़ाते हुए अन्‍यन्‍त प्रकाशित हो रहे थे। आचार्यप्रवर द्रोण की पताका पर कमण्‍डलुविभूषित सुवर्णमयी वेदी और धनुष के चिह्न बने हुए थे। कई लाख सैनिकों की सेना को अपने साथ लेकर चलने वाले दुर्योधन माणिमय महान ध्‍वज नाग चिह्न से विभूषित था। पौरव, कालंगराज श्रुतायुध, काम्‍बोजराज सुदक्षिण, क्षेमधन्‍वा तथा सुमित्र- ये पांच प्रधान रथी दुर्योधन के आगे-आगे चल रहे थे।

वृषभचिह्नित ध्‍वजा-पताका से युक्‍त बहुमूल्‍य रथ पर बैठे हुए कृपाचार्य मगध की श्रेष्ठ सेना को अपने साथ लिये चल रहे थे। अंगराज तथा मनस्‍वी कृपाचार्य से सुरक्षित पूर्वदेशीय क्षत्रियों की वह विशालवाहिनी शरद्ऋतु के बादलों के समान शोभा पाती थी। महायशस्‍वी राजा जयद्रथ वराह के चिह्न से युक्‍त रजतमय ध्‍वजा-पताका के साथ रथ पर आरूढ़ हो सेना के अग्रभाग में खडे़ हुए बड़ी शोभा पा रहे थे। उनके अधीन एक लाख रथ, आठ हजार हाथी और साठ हजार घुड़सवार थे। सिन्‍धुराज के द्वारा सुरक्षित अनन्‍त रथ, हा‍थी और घोड़ों से भरी हुई विशाल सेना अद्भुत शोभा पा रही थी। कलिंग देश का राजा श्रुतायुध अपने मित्र केतुमान के साथ साठ हजार रथ और दस हजार हाथियों को साथ लिये युद्ध के लिये चला।

यन्‍त्र, तोमर, तूणीर तथा पताकाओं से सुशोभित उसके विशाल गजराज पर्वतों के समान प्रतीत होते थे। कलिंगराज के रथ की ध्‍वजा पर अग्नि का चिह्न बना हुआ था। वह श्‍वेत छत्र और चँवर रूपी पंखे तथा पदक (कण्‍ठहार) से विभूषित हो बड़ी शोभा पा रहा था। राजन्! केतुमान भी विचित्र एवं विशाल अंकुश से युक्‍त गजराज पर आरूढ़ हो समर भूमि में खड़ा हुआ मेघों की घटा के ऊपर प्रकाशित होने वाले सूर्यदेव के समान जान पड़ता था। इसी प्रकार श्रेष्ठ गजराज पर आरूढ़ हो राजा भगदत्त भी वज्रधारी इन्‍द्र के समान अपने तेज से उद्दीप्‍त हो युद्ध के लिये आगे बढ़ गये थे। अवन्तिदेश के राजकुमार विन्द और अनुविन्द भी भगदत्‍त के समान ही तेजस्‍वी थे।

वे दोनों भाई हाथी की पीठ पर बैठकर केतुमान के पीछे-पीछे चल रहे थे। राजन! रथों के समूह से युक्‍त उस सेना का भयंकर व्‍यूह सर्वतोमुखी था। वह हँसता हुआ आक्रमण सा कर रहा था। हाथी उस व्‍यूह अंग थे, राजाओं का समुदाय ही उसका मस्‍तक था और घोड़े उसके पंख जान पड़ते थे। द्रोणाचार्य, राजा शान्‍तनुन्‍दन भीष्म, आचार्य पुत्र अश्वत्थामा, बाह्लीक और कृपाचार्य ने उस सैन्‍य व्‍यूह का निर्माण किया था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्‍म पर्व के अन्‍तर्गत श्री मद्भगवद्गगीता पर्व में सैन्‍यवर्णन विषयक सत्रहवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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