महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 14 श्लोक 57-80

चतुर्दश (14) अध्याय: भीष्म पर्व (श्रीमद्भगवतद्गीता पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 57-80 का हिन्दी अनुवाद


मैं समझता हूँ कि भीष्‍म जी के मारे जाने पर मेरे बेटे दु:ख के कारण अत्‍यंतशोकमग्‍न हो गये होंगे। संजय! मेरा हृदय निश्चय ही लोहे का बना हुआ है, जो पुरुषसिंह भीष्म को मारा गया सुनकर भी विदीर्ण नहीं हो रहा है। जिन पुरुषरत्‍न तथा दुर्घर्ष वीरशिरोमणि में अस्त्र, बुद्धि और नीति तीन अप्रमेय शक्तियां थीं, वे युद्ध में कैसे मारे गये? जान पड़ता है कि अस्‍त्र से शौर्य से, तपस्‍या से, बुद्धि से, धैर्य से तथा त्‍याग के द्वारा भी कोई मृत्‍यु से छूट नहीं सकता है। संजय! निश्चय ही काल की शक्ति बहुत बड़ी है, सम्‍पूर्ण जगत् के लिये वह दुर्लंघय है, जिसके अधीन होने के कारण तुम शांतनुनंदन भीष्‍म को मारा गया बता रहे हो। मुझे शांतनुनंदन भीष्‍म से अपने पक्ष के परिचाण की बड़ी आशा थी। इस समय अपने पुत्र के शोक से संतप्‍त होकर मैं महान् दु:ख से चिंतित हो उठा हूँ।

संजय! जब दुर्योधन ने शांतनुनंदन भीष्‍म को अस्‍ताचलगामी सूर्य की भाँति पृथ्‍वी पर पड़ा देखा, तब उसने क्‍या सोचा? संजय! जब मैं अपनी बुद्धि से विचार करके देखता हूँ तो अपने अथवा शत्रुपक्ष के राजाओं में से किसी का भी जीवन इस युद्ध में शेष रहता नहीं दिखायी देता है। ऋषियों ने क्षत्रियों का यह धर्म अत्‍यंत कठोर निश्चित किया है, जिसमें रहते हुए पाण्‍डव शांतनुनंदन भीष्‍म को मारकर राज्‍य लेना चाहते हैं। अथवा हम भी तो उन महारथी भीष्‍म को मरवाकर ही राज्‍य लेना चाहते हैं। क्षत्रिय धर्म में स्थित हुए मेरे बच्‍चे कुंतीकुमारों का कोई अपराध नहीं है।

संजय! दुस्‍तर आपत्ति के समय श्रेष्‍ठ पुरुष को यही करना चाहिये, जो भीष्‍म जी ने किया है, कि वह शक्त्‍िा के अनुसार अधिक से अधिक पराक्रम करे। यह गुण भीष्‍म जी में पूर्णरूप से प्रतिष्ठित था। भीष्‍म जी किसी से पराजित न होने वाले और लज्‍जाशील थे। विपक्षी सेनाओं का संहार करते हुए उन मेरे ताऊ भीष्‍म जी को पाण्‍डवों ने कैसे रोका? उन महामनस्‍वी वीरों ने किस प्रकार सेनाएं संगठित की और किसी प्रकार युद्ध किया? संजय! शत्रुओं ने मेरे आदरणीय पिता भीष्‍म का किस प्रकार वध किया? दुर्योधन, कर्ण, दु:शासन तथा सुबलपुत्र जुआरी शकुनि ने भीष्‍म जी के मारे जाने पर क्‍या-क्‍या बातें कहीं? संजय! जहाँ मनुष्‍य, हाथी और घोड़ों के शरीर बिछे हुए थे, जहाँ बाण, शक्ति, महान् खंग और तोमररूपी पासे फेंके जाते थे, जो युद्ध के कारण दुर्गम एवं महान् भय देने वाली थी, उस रणक्षेत्ररूपी द्यूतसभा में किन-किन मंदबुद्धि जुआरियों ने प्रवेश किया था? जहाँ प्राणों की बाजी लगायी जाती थी, वह भयंकर जूए का खेल किन-किन नरश्रेष्‍ठ वीरों ने खेला था?

संजय! शांतनुनंदन भीष्‍म के सिवा, उस युद्ध में कौन-कौन-से हार रहे थे, किन-किन लोगों की पराजय हुई तथा कौन-कौन वीर बाणों के लक्ष्‍य बनकर मार गिराये गये? यह सब मुझे बताओ। युद्धभूमि में शोभा पाने वाले भयंकर पराक्रमी अपने ताऊ देवव्रत भीष्‍म का मारा गया सुनकर मेरे हृदय में शांति नहीं रह गयी है। उनके मारे जाने से मेरे पुत्रों की जो हानि होने वाली है, उसके कारण मेरे मन में भारी व्‍यथा जाग उठी है। संजय! तुम अपने वचनरूपी धृत की आहुति डालकर मेरी उस चिंता एवं व्‍यथारूपी अग्नि को और भी उद्दीप्‍त कर रहे हो। जिन्होंने सम्पूर्ण जगत में विख्यात इस युद्ध के महान भार को अपनी भुजाओं पर उठा रखा था, उन्हीं भीष्म जी को मारा गया देख मेरे पुत्र भारी शोक में पड़ गये होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है। मैं दुर्योधन के द्वारा प्रकट किये हुए उन दु:खों को सुनूँगा। इसलिये संजय! मुझसे वहाँ का सारा वृत्तान्त कहो। मूर्ख दुर्योधन के अज्ञान के कारण उस युद्ध में अन्याय और न्याय की जो-जो बातें संघटित हुई हों, उन सबका वर्णन करो। विजय की इच्छा रखने वाले अस्त्रवेत्ता भीष्म जी ने उस युद्ध में अपनी तेजस्विता के अनुरूप जो-जो कार्य किया हो, वह सभी पूर्णरूप से मुझे बताओ। कौरवों और पाण्डवों की सेनाओं का वह युद्ध जिस समय जिस क्रम से और जिस रूप में हुआ था, वह सब कहो।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्‍मपर्व के अन्तर्गत श्रीमद्भगवतद्गीतापर्व में भीष्‍म विषयक चौदहवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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