अष्टादशाधिकशततम (118) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 23-44 का हिन्दी अनुवाद
भारत! जैसे पूर्वकाल में देवराज इन्द्र ने संग्राम भूमि में दैत्यों की सेना को संतप्त किया था, उसी प्रकार भीष्म जी पाण्डव योद्धाओं को संताप दे रहे थे। उन्हें इस प्रकार पराक्रम करते हुए देख मधु दैत्य को मारने वाले देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से प्रसन्नतापूर्वक कहा- ‘अर्जुन! ये शान्तनुनन्दन भीष्म दोनों सेनाओं के बीच में खड़े हैं। यदि तुम बलपूर्वक इन्हें मार सको तो तुम्हारी विजय हो जायेगी। जहाँ ये इस सेना का संहार कर रहे हैं, वहीं पहुँचकर इन्हें बलपूर्वक स्तम्भित कर दो (जिससे ये आगे या पीछे किसी ओर हट न सके)। विभो! तुम्हारे सिवा दूसरा कोई ऐसा नहीं है, जो भीष्म के बाणों की चोट सह सके। राजन! इस प्रकार भगवान से प्रेरित होकर कपिध्वज अर्जुन ने उसी क्षण अपने बाणों द्वारा ध्वज, रथ और घोड़ों सहित भीष्म को आच्छादित कर दिया। कुरुश्रेष्ठ वीरों में प्रधान भीष्म ने भी अपने बाण समूहों द्वारा अर्जुन के चलाये हुए बाण समुदाय के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। तत्पश्चात उत्तम गांठ और तीखी धार वाले वज्रतुल्य बाणों द्वारा वे पुनः पाण्डव महारथियों का शीघ्रतापूर्वक वध करने लगे। इसी समय पांचालराज द्रुपद, पराक्रमी धृष्टकेतु, पाण्डुनन्दन भीमसेन, द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न, नकुल-सहदेव, चेकितान, पांच केकय राजकुमार, महाबाहु सात्यकि, सुभद्राकुमार अभिमन्यु, घटोत्कच, द्रौपदी के पांचों पुत्र, शिखण्डी, पराक्रमी कुन्तिभोज, सुशर्मा तथा विराट- ये और दूसरे भी बहुत से महाबली पाण्डव सैनिक भीष्म के बाणों से पीड़ित हो शोक के समुद्र में डूब रहे थे, परंतु अर्जुन ने उन सबका उद्धार कर दिया। तब शिखण्डी अपने उत्तम अस्त्र-शस्त्रों को लेकर बड़े वेग से भीष्म की ही ओर दौड़ा। उस समय किरीटधारी अर्जुन उसकी रक्षा कर रहे थे। तत्पश्चात युद्ध विभाग के अच्छे ज्ञाता और किसी से भी परास्त न होने वाले अर्जुन ने भीष्म के पीछे चलने वाले समस्त योद्धाओं को मारकर स्वयं भी भीष्म पर ही धावा किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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