पंचदशाधिकशततम (115) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: पंचदशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 23-42 का हिन्दी अनुवाद
भारत! आपके और शत्रुपक्ष के सब सैनिक युद्ध में शान्तनुनन्दन भीष्म को देखकर विरोधी सैनिकों के साथ जमकर युद्ध करने लगे। भरतनन्दन! एक दूसरे पर धावा करने वाले उन संतप्त सैनिकों का महान कोलाहल सम्पूर्ण दिशाओं में व्याप्त हो गया। शंखों और दुन्दुभियों का गम्भीर घोष तथा हाथियों की गर्जना के साथ सैनिकों का सिंहनाद बड़ा भयंकर जान पड़ता था। समस्त राजाओं की चन्द्रमा और सूर्य के समान प्रकाशित होने वाली प्रभा वीरों के अंगद और किरीटों के सामने अत्यन्त फीकी पड़ गयी। धूल मेघों की घटा-सी छा गयी। उसमें अस्त्र-शस्त्रों की चमक बिजली की प्रभा के समान व्याप्त हो रही थी, धनुषों की टंकार ध्वनि अत्यन्त भयंकर प्रतीत होने लगी। बाणों, शंखों तथा भेरियों के सम्मिलित शब्द जोर-जोर से सुनायी देने लगे। साथ ही दोनों सेनाओं में रथों की घरघराहट भी दूर तक फैलने लगी। दोनों सेनाओं के प्रास, शक्ति, ऋष्टि और बाणों के समुदायों से भरा हुआ वहाँ का आकाश प्रकाश हीन-सा जान पड़ता था। उस महासमर में रथी और घोड़े एक दूसरे पर टूटे पड़ते थे। हाथी हाथियों को और पैदल पैदल सिपाहियों को मार रहे थे। पुरुषसिंह! जैसे मांस के टुकडे़ के लिए दो श्येन पक्षी आपस में लड़ते हैं, उसी प्रकार वहाँ भीष्म के लिए कौरवों का पाण्डवों के साथ बड़ा भारी युद्ध हो रहा था। उस महासमर में एक दूसरे के वध के लिए एकत्र हुए विजयाभिलाषी सैनिकों का बड़ा भयंकर संग्राम हुआ।
इस प्रकार श्री महाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में भीष्म का उपदेशविषयक एक सौ पंद्रहवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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