दशाधिकशततम (111) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 41-58 का हिन्दी अनुवाद
तदनन्तर सोमदत्तकुमार ने युद्ध स्थल मे सुवर्णमय पंख से युक्त अत्यन्त तीखे नाराच द्वारा भीमसेन की छाती में प्रहार किया। नृपश्रेष्ठ! छाती मे लगे हुए उस बाण से प्रतापी भीमसेन वैसे ही सुशोभित हुए, जैसे पूर्वकाल में कार्तिकेय की शक्ति से आविद्ध होने पर क्रौंच पर्वत की शौभा हुई थी। क्रोध में भरे हुए वे दोनों नरश्रेष्ठ युद्ध में एक दूसरे पर लौहार के द्वारा माँजकर साफ किये हुए सूर्य के समान तेजस्वी बाणों का प्रहार कर रहे थे। भीमसेन भीष्म के वध की इच्छा रखकर महारथी भूरिश्रवा पर चोट करते थे और भूरिश्रवा भीष्म की विजय चाहता हुआ पाण्डुकुमार भीमसेन पर प्रहार करता था। वे दोनों युद्ध में एक दूसरे के अस्त्रों का प्रतीकार करते हुए लड़ रहे थे। दूसरी ओर कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर को विशाल सेना के साथ भीष्म के सम्मुख आते देख द्रोणाचार्य ने रोक दिया; वहाँ उन दोनों पुरुषसिंहों में घोर युद्ध हुआ। राजन्! द्रोणाचार्य के रथ की घबराहट मेघ की गर्जना के समान जान पड़ती थी। आर्य! उसे सुनकर प्रभद्रक वीर काँप उठे। महाराज! उस युद्धस्थल में पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर की वह विशाल सेना द्रोण के द्वारा जब रोक दी गयी, तब प्रयत्न करने पर भी वह एक पग भी आगे न बढ़ सकी। जनेश्वर! दूसरी ओर भीष्म के प्रति प्रयत्नपूर्वक आक्रमण करने वाले क्रोध में भरे हुए चेकितान को रणभूमि में आपके पुत्र चित्रसेन ने रोक दिया। पराक्रमी चित्रसेन भीष्म की रक्षा के लिये पराक्रम दिखा रहा था। भारत! उसने पूरी शक्ति लगाकर चेकितान के साथ युद्ध किया। इसी प्रकार चेकितान ने भी चित्रसेन की गति रोक दी। उन दोनों की मुठभेड़ में वहाँ महान युद्ध होने लगा। भरतनन्दन! वहाँ बार बार रोके जाने पर भी अर्जुन ने आपके पुत्र को युद्ध से विमुख करके आपकी सेना को रौंद डाला। भारत! उस समय दुःशासन भी यह निश्चय करके कि ये किसी प्रकार हमारे भीष्म को मार न सकें, पूरी शक्ति लगाकर अर्जुन को रोकने का प्रयत्न करता रहा। राजन्! अर्जुन ने भी समर में दुःशासन को अपने बाणों से बहुत घायल किया। सीधे जाने वाले अर्जुन के बाणों से आपके पुत्र के बार बार घायल होने पर पार्थ के उस पराक्रम को देखकर आपकी सारी सेना व्यथित हो उठी। अमित तेजस्वी अर्जुन ने उसे बार बार पीड़ित किया। भरतनन्दन! उस संग्राम में आपके पुत्र की सारी सेना को जहाँ-तहाँ श्रेष्ठ रथियों ने बाणों से विद्ध करके मथ डाला था।
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में द्वन्द्वयुद्ध विषयक एक सौ ग्यारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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