महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 110 श्लोक 24-44

दशाधिकशततम (110) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: दशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 24-44 का हिन्दी अनुवाद


यु़द्ध में प्रलयकालीन जल प्रवाह के समान आते हुए उन वीरों को आपकी सेना के श्रेष्ठ पुरुषों ने हर्ष और उत्साह में भरकर रोका। महाराज! महारथी दुःशासन ने भय छोड़कर भीष्म की जीवन-रक्षा के लिये धनंजय पर धावा किया। इसी प्रकार शूरवीर महारथी पाण्डवों ने युद्ध मेंं गंगानंदन [[भीष्म] के रथ की ओर खड़े हुए आपके पुत्रों पर आक्रमण किया। प्रजानाथ! वहाँ हमने सबसे अद्धभुत और विचित्र बात यह देखी कि अर्जुन दुःशासन के रथ के पास पहुँचकर वहाँ से आगे न बढ़ सके। जैसे तट की भूमि विक्षुब्ध जलराशि वाले महासागर को रोके रहती है, उसी प्रकार आपके पुत्र ने क्रोध मेंं भरे हुए अर्जुन को रोक दिया था।

भारत! वे दोनों रथियों मेंं श्रेष्ठ और दुर्जय वीर थे। दोनों ही कान्ति और दीप्ति मेंं चन्द्रमा और सूर्य के समान जान पड़ते थे और भारत! दुःशासन तथा अर्जुन दोनों वीर वृत्रासुर एवं इन्द्र के समान तेजस्वी थे। वे दोनों क्रोध में भरकर एक-दूसरे के वध की अभिलाषा रखते थे। उस महायुद्ध मेंं वे उसी प्रकार एक-दूसरे से भिड़े हुए थे, जैसे पूर्वकाल मेंं मयासुर और इन्द्र आपस मेंं लड़ते थे। महाराज! दुःशासन ने तीन बाणोंं द्वारा पाण्डुनन्दन अर्जुन को और बीस बाणोंं से वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को युद्ध मेंं घायल किया। भगवान श्रीकृष्ण को बाणों से पीड़ित हुआ देख अर्जुन का क्रोध उमड़ आया और उन्होंने दुःशासन को युद्ध में सौ नाराचों से घायल कर दिया। वे नाराच रणक्षेत्र में दुःशासन का कवच विदीर्ण करके उसका रक्त पीने लगे, मानो प्यासे सर्प तालाब में घुस गये हो।

महाराज! महारथी दुःशासन ने भय छोड़कर भीष्म की जीवन-रक्षा के लिये धनंजय पर धावा किया। इसी प्रकार शूरवीर महारथी पाण्डवों ने युद्ध मेंं गंगानंदन भीष्म के रथ की ओर खड़े हुए आपके पुत्रो पर आक्रमण किया। प्रजानाथ! वहाँ हमने सबसे अद्धभुत और विचित्र बात यह देखी कि अर्जुन दुःशासन के रथ के पास पहुँचकर वहाँ से आगे न बढ़ सके। जैसे तट की भूमि विक्षुब्ध जलराशि वाले महासागर को रोके रहती है, उसी प्रकार आपके पुत्र ने क्रोध मेंं भरे हुए अर्जुन को रोक दिया था।

अर्जुन और दु:शासन के बीच घोर युद्ध

भारत! वे दोनो रथियो मेंं श्रेष्ठ और दुर्जय वीर थे। दोनों ही कान्ति और दीप्ति मेंं चन्द्रमा और सूर्य के समान जान पड़ते थे और भारत! दुःशासन तथा अर्जुन दोनो वीर वृत्रासुर एवं इन्द्र के समान तेजस्वी थे। वे दोनों क्रोंध में भरकर एक-दूसरे के वध की अभिलाषा रखते थे। उस महायुद्ध मेंं वे उसी प्रकार एक-दूसरे से भिड़े हुए थे, जैसे पूर्वकाल मेंं मयासुर और इन्द्र आपस मेंं लड़ते थे। महाराज! दुःशासन ने तीन बाणोंं द्वारा पाण्डुनन्दन अर्जुन को और बीस बाणोंं से वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण को युद्ध मेंं घायल किया। भगवान श्रीकृष्ण को बाणों से पीड़ित हुआ देख अर्जुन का क्रोध उमड़ आया और उन्होंने दुःशासन को युद्ध में सौ नाराचों से घायल कर दिया। वे नाराच रणक्षेत्र में दुःशासन का कवच विदीर्ण करके उसका रक्त पीने लगे, मानो प्यासे सर्प तालाब में घुस गये हो। भरतश्रेष्ठ! तब दुःशासन ने कुपित होकर अर्जुन के ललाट मेंं झुकी हुई गाँठ वाले तीन पंखयुक्त बाण मारे। ललाट में लगे हुए उन बाणों द्वारा पाण्डुनन्दन अर्जुन युद्ध में उसी प्रकार शोभा पाने लगे, जैसेे मेरुपर्वत अपने तीन अत्यंत ऊँचे शिखरो से सुषोभित होता है। आपके धनुर्धर पुत्र द्वारा युद्ध मेंं अधिक घायल किये जाने पर महाधनुर्धर अर्जुन खिले हुए पलाश वृक्ष के समान शोभा पाने लगे। तदनंतर कुपित हुए पाण्डुपुत्र अर्जुन दुःशासन को उसी प्रकार पीड़ा देने लगे, जैसे पूर्णिमा के दिन अत्यंत क्रोध मेंं भरा हुआ राहु पूर्ण चन्द्रमा को पीड़ा देता है। प्रजानाथ! बलवान् अर्जुन के द्वारा पीड़ित होने पर आपके पुत्र ने शान पर चढ़ाकर तेज किये हुए कंकपत्र युक्त बाणों द्वारा समरभूमि मेंं उन कुन्तीकुमार को बींध ड़ाला। तब अर्जुन तीन बाणोंं से दुःशासन के रथ और धनुष को छिन्न-भिन्न करके आपके उस पुत्र को पैने बाणोंं द्वारा अच्छी तरह घायल किया। तब दुःशासन ने दूसरा धनुष ले भीष्म के सामने खड़े होकर अर्जुन की दोनों भुजाओं और छाती में पच्चीस बाण मारे।

महाराज! तब शत्रुओ को संताप देने वाले पाण्डुनन्दन अर्जुन ने कुपित हो दुःशासन पर यमदण्ड़ के समान भयंकर बहुत से बाण चलायें। परन्तु आपके पुत्र ने अर्जुन के प्रयत्नशील होते हुए भी उन बाणों को अपने पास आने के पहले ही काट ड़ाला। वह एक अद्धभुत-सी बात थी। बाणोंं को काटने के पश्चात् आपके पुत्र ने कुन्तीकुमार अर्जुन को तीखे बाणों द्वारा बींध ड़ाला, तब रणक्षेत्र मेंं अर्जुन ने कुपित होकर अपने धनुष पर स्वर्णमय पंख से युक्त एवं शिला पर रगड़कर तेज किये हुए बाणों का संधान किया और उन्हें दुःशासन पर चलाया। महाराज! भरतनन्दन! जैसे हंस तालाब मेंं पहुँचकर उसके भीतर गोते लगाते हैं, उसी प्रकार वे बाण महामना दुःशासन के शरीर मेंं धँस गये।

भरतश्रेष्ठ! तब दुःशासन ने कुपित होकर अर्जुन के ललाट मेंं झुकी हुई गाँठ वाले तीन पंखयुक्त बाण मारे। ललाट में लगे हुए उन बाणों द्वारा पाण्डुनन्दन अर्जुन युद्ध में उसी प्रकार शोभा पाने लगे, जैसेे मेरुपर्वत अपने तीन अत्यंत ऊँचे शिखरों से सुषोभित होता है। आपके धनुर्धर पुत्र द्वारा युद्ध मेंं अधिक घायल किये जाने पर महाधनुर्धर अर्जुन खिले हुए पलाश वृक्ष के समान शोभा पाने लगे। तदनंतर कुपित हुए पाण्डुपुत्र अर्जुन दुःशासन को उसी प्रकार पीड़ा देने लगे, जैसे पूर्णिमा के दिन अत्यंत क्रोध में भरा हुआ राहु पूर्ण चन्द्रमा को पीड़ा देता है। प्रजानाथ! बलवान् अर्जुन के द्वारा पीड़ित होने पर आपके पुत्र ने शान पर चढ़ाकर तेज किये हुए कंकपत्र युक्त बाणों द्वारा समरभूमि मेंं उन कुन्तीकुमार को बींध डाला। तब अर्जुन तीन बाणोंं से दुःशासन के रथ और धनुष को छिन्न-भिन्न करके आपके उस पुत्र को पैने बाणोंं द्वारा अच्छी तरह घायल किया। तब दुःशासन ने दूसरा धनुष ले भीष्म के सामने खड़े होकर अर्जुन की दोनों भुजाओं और छाती में पच्चीस बाण मारे।

महाराज! तब शत्रुओं को संताप देने वाले पाण्डुनन्दन अर्जुन ने कुपित हो दुःशासन पर यमदण्ड के समान भयंकर बहुत से बाण चलाये। परन्तु आपके पुत्र ने अर्जुन के प्रयत्नशील होते हुए भी उन बाणों को अपने पास आने के पहले ही काट डाला। वह एक अद्भुत-सी बात थी। बाणोंं को काटने के पश्चात् आपके पुत्र ने कुन्तीकुमार अर्जुन को तीखे बाणों द्वारा बींध डाला, तब रणक्षेत्र मेंं अर्जुन ने कुपित होकर अपने धनुष पर स्वर्णमय पंख से युक्त एवं शिला पर रगड़कर तेज किये हुए बाणों का संधान किया और उन्हें दुःशासन पर चलाया। महाराज! भरतनन्दन! जैसे हंस तालाब मेंं पहुँचकर उसके भीतर गोते लगाते हैं, उसी प्रकार वे बाण महामना दुःशासन के शरीर में धँस गये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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