महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 91 श्लोक 22-44

एकनवतितम (91) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: एकनवतितम अध्याय: श्लोक 22-44 का हिन्दी अनुवाद

जैसे बादल सूर्य की किरणों को छिपा देता है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य रुपी मेघ ने अपनी बाण वर्षा के वेग से अर्जुनरुपी सूर्य के इस बाण रुपी किरण समूह को आच्‍छादित कर दिया, जो युद्ध में मुख्‍य- मुख्‍य कौरव वीरों को संतप्‍त कर रहा था। तत्‍पश्रात शत्रुओं के प्राण लेने वाले एक नाराच का प्रहार करके द्रोणाचार्य ने अर्जुन की छाती में गहरी चोट पहुँचायी। उस आघात से अर्जुन का सारा शरीर विहल हो गया, मानो भूकम्‍प होने पर पर्वत हिल उठा हो। तथापि अर्जुन ने धैर्य धारण करके पंखयुक्‍त बाणों द्वारा द्रोणाचार्य को घायल कर दिया। फिर द्रोण ने भी पांच बाणों से भगवान श्रीकृष्‍ण को, तिहत्‍तर बाणों से अर्जुन को तीन बाणों द्वारा उनके ध्‍वज को भी चोट पहुँचायी।

राजन! पराक्रमी द्रोणाचार्य ने अपने शिष्य अर्जुन से अधिक पराक्रम प्रकट करने की इच्‍छा रखकर पलक मारते-मारते अपने बाणों की वर्षा द्वारा अर्जुन को अद्दश्‍य कर दिया। हमने देखा, द्रोणाचार्य के बाण परस्‍पर सटे हुए गिरते थे। उनका अद्भुत धनुष सदा मण्‍डलाकार ही दिखायी देता था। राजन्। उस समरागड़ण में द्रोणाचार्य के छोड़े हुए कंकपत्रविभूषित बहुत-से बाण श्रीकृष्‍ण और अर्जुन पर पड़ने लगे। उस समय द्रोणाचार्य और अर्जुन का वैसा युद्ध देखकर परम बुद्धिमान वसुदेवनन्‍दन श्री कृष्‍ण मन-ही-मन कर्त्तव्‍य का निश्‍चय कर लिया। तत्‍पश्रात श्रीकृष्‍ण अर्जुन से इस प्रकार बोले—‘अर्जुन! अर्जुन! महाबाहो! हमारा अधिक समय यहाँ न बीत जाय, इसलिये द्रोणाचार्य को छोड़कर आगे चलें यही इस समय सबसे महान कार्य है’। तब अर्जुन ने भी सच्चिदानन्‍दस्‍वरुप केशव से कहा-‘प्रभो! आपकी जैसी रूचि हो, वैसा कीजिये।, तत्‍पश्चात अर्जुन महाबाहु द्रोणाचार्य की परिक्रमा करके लौट पड़े और बाणों की वर्षा करते हुए आगे चले गये। यह देख द्रोणाचार्य ने स्‍वयं कहा-‘पाण्‍डुनन्‍दन! तुम इस प्रकार कहाँ चले जा रहे हो तुम तो रणक्षेत्र में शत्रु को पराजित किये बिना कभी नहीं लौटते थे’।

अर्जुन बोले- ब्रह्मन! आप मेरे गुरु हैं। शत्रु नहीं हैं। मैं आपका पुत्र के समान प्रिय शिष्य हूँ। इस जगत में ऐसा कोई पुरुष नहीं है, जो युद्ध में आपको पराजित कर सके। संजय कहते हैं-राजन! ऐसा कहते हुए महाबाहु अर्जुन ने जयद्रथ वध के लिये उत्‍सुक हो बड़ी उतावली के साथ आपकी सेना पर धावा किया। आपकी सेना में प्रवेश करते समय उनके पीछे-पीछे पाञ्चाल वीर महामना युधामन्‍यु और उत्तमौजा चक्र-रक्षक होकर गये। महाराज! तब जय, सात्‍वत-वंशी कृतवर्मा, काम्‍बोज-नरेश तथा श्रुतायु ने सामने आकर अर्जुन को रोका। इनके पीछे दस हजार रथी, अभीषाह, शूरसेन, शिबि, वसाति, मावेल्लक, ललित्‍थ, केकय, मद्रक, नारायण नामक गोपालगण तथा काम्‍बोजदेशीय सैनिकगण भी थे। इन सबको पूर्वकाल में कर्ण ने रण भूमि में जीतकर अपने अधीन कर लिया था। ये सब-के-सब शूरवीरों द्वारा सम्‍मानित योद्धा थे और प्रसन्‍नचित हो द्रोणाचार्य को आगे करके अर्जुन पर पढ़ आये थे। अर्जुन पुत्र शोक से संतप्‍त एवं कुपित हुए प्राणान्तक मृत्‍यु के समान प्रतीत होते थे। वे उस भयंकर युद्ध में अपने प्राणों को निछावर करने के लिये उद्यत, कवच आदि से सुसज्जित और विचित्र रीति से युद्ध करने वाले थे। जैसे यूथपति गजराज गज समूह में प्रवेश करता है, उसी प्रकार आपकी सेनाओं में घुसते हुए महाधनुर्धर परम पराक्रमी उन नरश्रेष्‍ठ अर्जुन को पूर्वोक्‍त योद्धाओं ने आकर रोका। तदनन्‍तर एक दूसरे को ललकारते हुए कौरव योद्धाओं तथा अर्जुन में रोमांचकारी एवं भयंकर युद्ध छिड़ गया। जैसे चिकित्‍साकी क्रिया उभड़ते हुए रोग को रोक देती है, उसी प्रकार जयद्रथ का वध करने की इच्‍छा से आते हुए पुरुष श्रेष्‍ठ अर्जुन को समस्‍त कौरव वीरों ने एक साथ मिलकर रोक दिया।

इस प्रकार श्री महाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तगर्त जयद्रथवध पर्व में द्रोणातिक्रमण विषयक इक्‍यानबेवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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