महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 59 श्लोक 12-25

एकोनषष्टितम (59) अध्याय: द्रोण पर्व ( अभिमन्‍युपर्व )

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महाभारत: द्रोण पर्व:एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 12-25 का हिन्दी अनुवाद
  • दशरथनन्‍दन श्रीराम[1] सम्‍पूर्ण प्राणियों से बढ़कर शोभा पाते थे। श्रीराम के राज्‍यशासन करते समय ऋषि, देवता और मनुष्‍य सभी एक साथ इस पृथ्‍वी पर निवास करते थे। (12)
  • उस समय उनके राज्‍य शासनकाल में प्राणियों के प्राण, अपान और समान आदि प्राणवायु का क्षय नहीं होता था; इस नियम में कोई हेर-फेर नहीं था। (13)
  • सब[2] ओर अग्निदेव प्रज्‍वलित होते रहते थे। उन दिनों किसी प्रकार का अनर्थ नहीं होता था। सारी प्रजा दीर्घायु होती थी। किसी युवक की मृत्यु नहीं हुआ करती थी। (14)
  • चारों वेदों के स्‍वाध्‍याय से प्रसन्‍न हुए देवता तथा पितृगण नाना प्रकार के हव्‍य और कव्‍य प्राप्‍त करते थे। सब ओर इष्‍ट[3]और पूर्त[4] का अनुष्‍ठान होता रहता था। (15)
  • श्रीरामचन्‍द्र जी के राज्‍य में किसी भी देश में डाँस और मच्‍छरों का भय नहीं था। साँप और बिच्‍छू नष्‍ट हो गये थे। जल में पड़ने पर भी किसी प्राणी की मृत्यु नहीं होती थी। चिता की अग्नि ने किसी भी मनुष्‍य को असमय में नहीं जलाया था[5]। (16)
  • उन दिनों लोग अधर्म में रुचि रखने वाले, लोभी और मूर्ख नहीं होते थे। उस समय सभी वर्ण के लोग अपने लिये शास्‍त्रविहित यज्ञ-यागादि कर्मों का अनुष्‍ठान करते थे। (17)
  • जनस्‍थान में राक्षसों ने जो पितरों और देवताओं की पूजा अर्चा नष्‍ट कर दी थी, उसे भगवान श्रीराम ने राक्षसों को मारकर पुन: प्रचलित किया और पितरों को श्राद्ध का तथा देवताओं को यज्ञ का भाग दिया। (18)
  • श्रीराम के राज्‍यकाल में एक-एक मनुष्‍य के हजार-हजार पुत्र होते थे और उनकी आयु भी एक-एक सहस्‍त्र वर्षों की होती थी। बड़ों को अपने छोटों का श्राद्ध नहीं करना पड़ता था। (19)
  • श्रीराम के राज्‍य में कहीं भी चोर, नाना प्रकार के रोग और भाँति-भाँति के उपद्रव नहीं थे। दुर्भिक्ष, व्‍याधि और अनावृष्टि का भय भी कहीं नहीं था। सारा जगत अत्‍यन्‍त सुख से सम्‍पन्‍न और प्रसन्‍न ही दिखायी देता था। इस प्रकार श्रीराम के राज्‍य करते समय सब लोग बहुत सुखी थे।
  • भगवान श्रीराम की श्‍यामसुन्‍दर छबि, तरुण अवस्‍था और कुछ-कुछ अरुणाई लिये बड़ी-बड़ी आँखें थीं। उनकी चाल मतवाले हाथी-जैसी थी, भुजाएँ सुन्‍दर और घुटनों तक लंबी थीं। कंधे सिंह के समान थे। उनमें महान बल था। उनकी कान्ति समस्‍त प्राणियों के मन को मोह लेने वाली थी। उन्‍होंने ग्‍यारह हजार वर्षों तक राज्‍य किया था। (20-21)
  • श्रीरामचन्‍द्र जी के राज्‍य शासनकाल में समस्‍त प्रजाओं में ‘राम, राम, राम’ यही चर्चा होती थी। श्रीराम के कारण सारा जगत ही राममय हो रहा था। (22)
  • फिर समय अनुसार अपने और भाइयों के अंशभूत दो-दो पुत्रों द्वारा आठ प्रकार के राजवंश की स्‍थापना करके उन्‍होंने चारों वर्णों की प्रजा को अपने धाम में भेजकर स्‍वयं ही सदेह परम धाम को गमन किया। (23)
  • श्‍वैत्‍य सृंजय! ये श्रीरामचन्‍द्र जी धर्म, ज्ञान, वैराग्‍य और ऐश्‍वर्य चारों बातों में तुमसे बहुत बढ़े-चढ़े थे और तुम्‍हारे पुत्र से भी अधिक पुण्‍यात्‍मा थे। जब वे भी यहाँ नहीं रह सके, तब दूसरों की तो बात ही क्‍या है? अत: तुम यज्ञ एवं दान-दक्षिणा से रहित अपने पुत्र के लिये शोक न करो। नारद जी ने राजा सृंजय से यही बात कही। (24-25)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोण के अन्‍तर्गत अभिमन्‍युवधपर्व में षोडशराजकीयोपाख्‍यान विषयक उनसठवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अपने महान तेज के कारण
  2. यज्ञों अथवा अग्निहोत्र-ग्रहों में
  3. यज्ञयागादि
  4. वापी, कूप, तडाग और वृक्षारोपण आदि
  5. किसी की अकाल मृत्‍यु नहीं हुई थी

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