वीर! शत्रुसूदन कपिध्वज अर्जुन के उड़ते हुए रथ की घरघराहट को आपके सिवा दूसरे राजा नहीं सह सकेंगे। (20)
आपके सिवा दूसरा कौन राजा अर्जुन से युद्ध कर सकता है? मनीषी पुरुष जिनके दिव्य कर्मों का बखान करते हैं, जो मानवेतर प्राणियों–असुरों तथा दैत्यों से भी संग्राम कर चुके हैं, त्रिनेत्रधारी महात्मा भगवान शंकर के साथ भी जिन्होंने युद्ध किया है और उनसे वह उत्तम वर प्राप्त किया है, जो अजितेन्द्रिय पुरुषों के लिये सर्वथा दुर्लभ है, जिन्हें पहले आप भी जीत नहीं सके हैं, उन्हें आज दूसरा कौन युद्ध में जीत सकता है? (21-23)
आप अपने पराक्रम से शोभा पाने वाले वीर थे। आपने देवताओं तथा दानवों का दर्प दलन करने वाले क्षत्रियहन्ता घोर परशुरामजी को भी युद्ध में जीत लिया है। (24)
आज यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं अमर्ष में भरकर दृष्टि हर लेने वाले विषधर सर्प के समान अत्यन्त भयंकर युद्धकुशल शूरवीर पाण्डुपुत्र अर्जुन को अस्त्रबल से मार सकूँगा।
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्तर्गत द्रोणाभिषेक पर्व में कर्णवाक्यविषयक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।