महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 35 श्लोक 20-31

पंचत्रिंश (35) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

Prev.png

महाभारत: द्रोण पर्व: पंचत्रिंश अध्याय: श्लोक 20-31 का हिन्दी अनुवाद


  • युधिष्ठिर बोले– योद्धाओं में श्रेष्‍ठ वीर! तुम व्‍यूह का भेदन करो और हमारे लिये द्वार बना दो! तात! फिर तुम जिस मार्ग से जाओगे, उसी के द्वारा हम भी तुम्‍हारे पीछे-पीछे चले चलेंगे। (20)
  • बेटा! हम लोग युद्धस्‍थल में तुम्‍हें अर्जुन के समान मानते हैं। हम अपना ध्‍यान तुम्‍हारी ओर रखकर सब ओर से तुम्‍हारी रक्षा करते हुए तुम्‍हारे साथ ही चलेंगे। (21)
  • भीमसेन बोले- बेटा! मैं तुम्‍हारे साथ चलूँगा। धृष्टद्युम्न, सात्‍यकि, पांचालदेशीय योद्धा, केकयराजकुमार, मत्‍स्‍य देश के सैनिक तथा समस्‍त प्रभद्रकगण भी तुम्‍हारा अनुसरण करेंगे। (22)
  • तुम जहाँ-जहाँ एक बार भी व्‍यूह तोड़ दोगे, वहाँ-वहाँ हम लोग मुख्‍य-मुख्‍य योद्धाओं का वध करके उस व्‍यूह को बारंबार नष्‍ट करते रहेंगे। (23)
  • अभिमन्‍यु ने कहा– जैसे पतंग जलती हुई आग में कूद पड़ता है, उसी प्रकार मैं भी कुपित हो द्रोणाचार्य के दुर्गम सैन्‍य-व्‍यूह में प्रवेश करुँगा। (24)
  • आज मैं वह पराक्रम करुँगा, जो पिता और माता दोनों के कुलों के लिये हितकर होगा तथा वह मामा श्रीकृष्‍ण तथा पिता अर्जुन दोनों को प्रसन्‍न करेगा। (25)
  • यद्यपि मैं अभी बालक हूँ तो भी आज समस्‍त प्राणी देखेंगे कि मैंने अकेले ही समूह-के-समूह शत्रु सैनिकों का युद्ध में संहार कर डाला है। (26)
  • यदि आज मेरे साथ युद्ध करके कोई भी सैनिक जीवित बच जाय तो मैं अर्जुन का पुत्र नहीं और सुभद्रा की कोख से मेरा जन्‍म नहीं। (27)
  • यदि मैं युद्ध में एकमात्र रथ की सहायता से सम्‍पूर्ण क्षत्रिय मण्‍डल के आठ टुकड़े न कर दूँ तो अर्जुन का पुत्र नहीं। (28)
  • युधिष्ठिर ने कहा- सुभद्रानन्‍दन! ऐसी ओजस्‍वी बातें कहते हुए तुम्‍हारा बल निरन्‍तर बढ़ता रहे; क्‍योंकि तुम द्रोणाचार्य के दुर्गम सैन्‍य में प्रवेश करने का उत्‍साह रखते हो। (29)
  • द्रोणाचार्य की सेना उन महाबली धनुर्धर पुरुषसिंह वीरों द्वारा सुरक्षित है, जो कि साध्‍य, रुद्र तथा मरुद्गणों के समान बलवान और वसु, अग्नि एवं सूर्य के समान पराक्रमी हैं। (30)
  • संजय कहते हैं- राजन! महाराज युधिष्ठिर का यह वचन सुनकर अभिमन्‍यु ने अपने सारथि को यह आज्ञा दी–'सुमित्र! तुम शीघ्र ही घोड़ों को रणक्षेत्र में द्रोणाचार्य की सेना की ओर हाँक ले चलो। (31)
इस प्रकार श्रीमहाभारतद्रोणपर्व के अन्‍तर्गत अभिमन्‍युवध पर्व में अभिमन्‍यु की प्रतिज्ञाविषयक पैंतीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः