महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 25 श्लोक 25-49

पंचविंश (25) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: पंचविंश अध्याय: श्लोक 25-49 का हिन्दी अनुवाद
  • तब सुतसोम ने अत्‍यन्‍त कुपित हो अपने चाचा विविंशति को सीधे जाने वाले बाणों द्वारा घायल कर दिया और स्‍वयं एक वीर पुरुष की भाँति कवच बाँधे सामने खड़ा रहा। (25)
  • तदनन्‍तर भीमरथ ने छ: तीखे लोहमय शीघ्रगामी बाणों द्वारा सारथि सहित शाल्‍व को यमलोक पहुँचा दिया। (26)
  • महाराज! श्रुतकर्मा मोर के समान रंग वाले घोड़ों पर आ रहा था। उस आपके पौत्र श्रुतकर्मा को चित्रसेन के पुत्र ने रोका। (27)
  • आपके दोनों दुर्जय पौत्र एक-दूसरे के वध की इच्‍छा रखकर अपने पितृगणों का मनोरथ सिद्ध करने के लिये अच्‍छी तरह युद्ध करने लगे। (28)
  • उस महासमर में प्रतिविन्‍ध्य को द्रोणाचार्य के सामने खड़ा देख पिता का सम्‍मान करते हुए अश्वत्‍थामा ने बाणों द्वारा रोक दिया। (29)
  • जिसके ध्वज में सिंह के पूँछ का चिह्न था और जो पिता की इष्‍ट सिद्धि के लिये खड़ा था, उस क्रोध में भरे हुए अश्रत्‍थामा को प्रतिविन्‍ध्‍य ने अपने पैने बाणों द्वारा बींध डाला। (30)
  • नरश्रेष्‍ठ! तब द्रोण पुत्र भी द्रौपदीकुमार प्रतिविन्‍ध्‍य पर बाणों की वर्षा करने लगा, मानो किसान बीज बोने के समय पर खेत में बीज डाल रहा हो। (31)
  • तदनन्‍तर अर्जुनपुत्र द्रौपदीकुमार महारथी श्रुतकीर्ति को द्रोणाचार्य के सामने जाते देख दु:शासन के पुत्र ने रोका। (32)
  • तब अर्जुन के समान पराक्रमी अर्जुनकुमार तीन अत्‍यन्‍त तीखे भल्‍लों द्वारा दु:शासनपुत्र के धनुष, ध्‍वज और सारथि के टुकड़े-टुकड़े करके द्रोणाचार्य के समीप जा पहुँचा। (33)
  • राजन! जो दोनों सेनाओं में सबसे अधिक शूरवीर माना जाता था, डाकू और लुटेरों को मारने वाले उस समुद्री प्रान्‍तों के अधिपति को दुर्योधनपुत्र लक्ष्‍मण ने रोका। (34)
  • भारत! तब वह लक्ष्‍मण के धनुष और ध्‍वज चिह्न को काटकर उसके ऊपर बाण-समूहों की वर्षा करता हुआ बहुत शोभा पाने लगा। (35)
  • परम बुद्धिमान नवयुवक विकर्ण ने युवावस्‍था से सम्‍पन्‍न द्रुपदकुमार शिखण्‍डी को युद्ध में आगे बढ़ने से रोका। (36)
  • तब शिखण्‍डी ने अपने बाण-समूह से विकर्ण को आच्‍छादित कर दिया। आपका बलवान पुत्र उस सायक-जाल को छिन्‍न–भिन्‍न करके बड़ी शोभा पाने लगा। (37)
  • अंगद ने वीर उत्तमौजा को अपने और द्रोणाचार्य के सामने आते देख युद्धस्‍थल में अपने बाण-समुदाय की वर्षा से रोक दिया। (38)
  • उन दोनों पुरुषसिंहों में बड़ा भयंकर युद्ध छिड़ गया। वह संग्राम समस्‍त सैनिकों की तथा उन दोनों की भी प्रसन्‍नता को बढ़ा रहा था। (39)
  • महाधनुर्धर बलवान दुर्मुख ने द्रोणाचार्य के सामने जाते हुए वीर पुरुजित को वत्‍सदन्‍तों के प्रहार द्वारा रोक दिया। (40)
  • तब पुरुजित ने एक नाराच द्वारा दुर्मुख पर उसकी दोनों भौहों के मध्‍यभाग में प्रहार किया। उस समय दुर्मुख का मुख मृणालयुक्‍त कमल के समान सुशोभित हुआ। (41)
  • कर्ण ने लाल रंग की ध्वजा से सुशोभित पाँचों भाई केकयराजकुमारों को द्रोणाचार्य के सम्‍मुख जाते देख उन्‍हें बाणों की वर्षा से रोक दिया। (42)
  • तब वे अत्‍यन्‍त संतप्‍त हो कर्ण पर बाणों की झड़ी लगाने लगे और कर्ण ने भी अपने बाणों के समूह से उन्‍हें बार-बार आच्‍छादित कर दिया। (43)
  • कर्ण तथा वे पाँचों राजकुमार एक-दूसरे के बरसाये हुए बाण-समूहों से व्‍याप्‍त एवं आच्‍छादित होकर घोड़े, सारथि, ध्‍वज तथा रथ सहित अदृश्‍य हो गये थे। (44)
  • राजन! आपके तीन पुत्र दुर्जय, जय और विजय ने नील, काश्य तथा जयत्‍सेन इन तीनों को रोक दिया। (45)
  • उन सब में भयंकर युद्ध छिड़ गया,जो सिंह, व्‍याघ्र और तेंदुओं[1] का रीछों, भैसों तथा साँड़ों के साथ होने वाले युद्ध के समान दर्शकों के हर्ष बढ़ाने वाला था। (46)
  • क्षेमधूर्ति और वृहन्‍त– ये दोनों भाई युद्ध में द्रोणाचार्य के सामने जाते हुए सात्‍यकि को अपने पैने बाणों द्वारा घायल करने लगे। (47)
  • जैसे वन में दो मदस्‍त्रावी गजराजों के साथ एक सिंह का युद्ध हो रहा हो, उसी प्रकार उन दोनों भाइयों तथा सात्‍यकि का युद्ध अत्‍यन्‍त अद्भुत सा हो रहा था। (48)
  • युद्ध का अभिनन्‍दन करने वाले राजा अम्‍बष्‍ठ को क्रोध में भरे हुए चेदिराज ने बाणों की वर्षा करते हुए द्रोणाचार्य के पास आने से रोक दिया। (49)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जर्खों

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