महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 23 श्लोक 64-83

त्रयोविंश (23) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 64-83 का हिन्दी अनुवाद
  • जिनके माला, कवच, अस्‍त्र–शस्‍त्र और ध्वज सब कुछ विचित्र हैं, उन राजा चित्रायुध[1] को पलाश के फूलों के समान लाल रंग वाले उत्तम घोड़े संग्राम में ले गये। (64)
  • जिनके ध्‍वज, कवच और धनुष सब एक रंग के थे, वे राजा नील अपने रथ में जुते हुए नील रंग के घोड़ों द्वारा रणक्षेत्र में उपस्थित हुए। (65)
  • जिनके रथ का आवरण, रथ तथा धनुष नाना प्रकार के रत्‍नों से जटित एवं अनेक रूप वाले थे, जिनके घोड़े, ध्‍वजा और पताकाएँ भी विचित्र प्रकार की थी, वे राजा चित्र चितकबरे घोड़ों द्वारा युद्ध के मैदान में आये। (66)
  • जिनके रंग कमलपत्र के समान थे, वे उत्‍तम घोड़े रोचमान के पुत्र हेमवर्ण को रणभूमि में ले गये। (67)
  • युद्ध करने में समर्थ, कल्‍याणमय कार्य करने वाले, सरकण्‍डे के समान श्‍वेतगौर पीठ वाले, श्‍वेत अण्‍डकोशधारी तथा मुर्गी के अण्‍डे के समान सफेद घोड़े दण्‍डकेतु को युद्धस्‍थल में ले गये। (68)
  • भगवान श्रीकृष्‍ण के हाथों से जब युद्ध में पाण्‍ड्य देश के राजा तथा वर्तमान नरेश के पिता मारे गये, पाण्ड्य राजाधानी का फाटक तोड़-फोड दिया गया और सारे बन्‍धु-बान्‍धव भाग गये, उस समय जिसने भीष्‍म, द्रोण, परशुराम तथा कृपाचार्य से अस्‍त्र-विद्या सीखकर उसने रुक्मी ,कर्ण, अर्जुन और श्रीकृष्‍ण की समानता प्राप्‍त कर ली; फिर द्वारका को नष्‍ट करने और सारी पृथ्वी पर विजय पाने का संकल्‍प किया; यह देख विद्वान सुहृदों ने हित की कामना रखकर जिसे वैसा दु:साहस करने से रोक दिया और अब जो वैर भाव को छोड़कर अपने राज्‍य का शासन कर रहा है और जिसके रथ पर सागर के चिह्न से युक्‍त ध्‍वजा फहराती है, पराक्रमरूपी धन का आश्रय लेने वाले उस बलवान राजा पाण्‍ड्य ने अपने दिव्‍य धनुष की टंकार करते हुए वैदूर्यमणि की जाली से आच्‍छादित तथा चन्‍द्रकिरणों के समान श्‍वेत घोड़ों द्वारा द्रोणाचार्य पर धावा किया। (69-73)
  • वासक पुष्‍पों के समान रंग वाले घोड़े राजा पाण्‍ड्य के पीछे चलने वाले एक लाख चालीस हजार श्रेष्‍ठ रथों का भार वहन कर रहे थे। (74)
  • अनेक प्रकार के रंग-रूप से युक्‍त विभिन्‍न आकृति और मुख वाले घोड़े रथ के पहिये के चिह्न से युक्‍त ध्‍वजा वाले वीर घटोत्कच को रणभूमि में ले गये। (75)
  • जो एकत्र हुए सम्‍पूर्ण भरतवंशियों के मतों का परित्‍याग करके अपने सम्‍पूर्ण मनोरथों को छोड़कर केवल भक्तिभाव से युधिष्ठिर के पक्ष में चले गये, उन लाल नेत्र और विशाल भुजा वाले राजा वृहन्‍त को, जो सुवर्णमय रथ पर बैठे हुए थे, अरट्टदेश के महापराक्रमी, विशालकाय और सुनहरे रंग वाले घोड़े रणभूमि में ले गये। (76-77)
  • धर्म के ज्ञाता तथा सेना के मध्‍य-भाग मे विद्यमान नृपश्रेष्‍ठ युधिष्ठिर को चारों ओर से घेरकर सुवर्ण के समान रंग वाले श्रेष्‍ठ घोड़े उनके साथ-साथ चल रहे थे। (78)
  • अन्‍य भिन्‍न–भिन्‍न प्रकार के वर्णों से युक्‍त सुन्‍दर अश्वों का आश्रय ले प्रभद्रक नाम वाले देवताओं जैसे रूपवान बहुसंख्‍यक प्रभद्रकगण युद्ध के लिये लौट पड़े। (79)
  • राजेन्‍द्र! भीमसेन सहित पूरी सावधानी से युद्ध के लिये उद्यत हुए ये सुवर्णमय ध्‍वज वाले राजा लोग इन्‍द्र सहित देवताओं के समान दृष्टिगोचर होते थे। (80)
  • वहाँ एकत्र हुए उन सब राजाओं की अपेक्षा धृष्टद्युम्न की अधिक शोभा हो रही थी और समस्‍त सेनाओं से ऊपर उठकर भरद्वाजनन्‍दन द्रोणाचार्य सुशोभित हो रहे थे। (81)
  • महाराज! काले मृगचर्म और कमण्‍डलु के चिह्न से युक्‍त उनका सुवर्णमय सुन्‍दर ध्‍वज अत्‍यन्‍त शोभा पा रहा था। (82)
  • वैदूर्यमणिमय नेत्रों से सुशोभित महासिंह के चिह्न से युक्‍त भीमसेन की चमकीली ध्‍वजा फहराती हुई बड़ी शोभा पा रही थी। उसे मैंने देखा था। (83)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. इन्हीं का वर्णन पहले श्लोक 56 में भी आ चुका है।

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