महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 21 श्लोक 46-65

एकविंश (21) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 46-65 का हिन्दी अनुवाद
  • समस्‍त सेनाओं को दग्‍ध करने वाले यमराज के समान भयंकर उदार महारथी द्रोणाचार्य पर कुन्‍तीपुत्र युधिष्ठिर आदि सब वीर सब ओर से टूट पड़े। (46)
  • उन सभी शूरवीरों ने एक साथ आकर द्रोणाचार्य को सब ओर से उसी प्रकार घेर लिया, जैसे जगत को तपाने वाले भगवान सूर्य अपनी किरणों से घिरे रहते हैं। (47)
  • आपकी सेना के राजा और राजकुमारों ने अस्‍त्र-शस्‍त्र लेकर उन शौर्यसम्‍पन्‍न महाधनुर्धर द्रोणाचार्य को उनकी रक्षा के लिये सब ओर से घेर रखा था। (48)
  • उस समय शिखण्‍डी ने झुकी हुई गाँठ वाले पाँच बाणों द्वारा द्रोणाचार्य को बींध डाला। तत्‍पश्चात क्षत्रवर्मा ने बीस, वसुदान ने पाँच, उत्तमौजा ने तीन, क्षत्रदेव ने सात, सात्‍यकि ने सौ, युधामन्यु ने आठ और युधिष्ठिर ने बारह बाणों द्वारा युद्धस्‍थल में द्रोणाचार्य को घायल कर दिया। धृष्टद्युम्न ने दस और चेकितान ने उन्‍हें तीन बाण मारे। (49-51)
  • तदनन्‍तर सत्‍यप्रतिज्ञ द्रोण ने मद की धारा बहाने वाले गजराज की भाँति रथ-सेना को लाँघकर दृढ़सेन को मार गिराया। (52)
  • फिर निर्भय-से प्रहार करते हुए राजा क्षेम के पास पहुँचकर उन्‍हें नौ बाणों से बींध डाला। उन बाणों से मारे जाकर वे रथ से नीचे गिर गये। (53)
  • यद्यपि वे शत्रुसेना के भीतर घुसकर सम्‍पूर्ण दिशाओं में विचर रहे थे, तथापि वे ही दूसरों के रक्षक थे, स्‍वयं किसी प्रकार किसी के रक्षणीय नहीं हुए। (54)
  • उन्‍होंने शिखण्‍डी को बारह और उत्तमौजा को बीस बाणों से घायल करके वसुदान को एक ही भल्ल से मारकर यमलोक भेज दिया। (55)
  • तत्‍पश्चात क्षत्रवर्मा को अस्‍सी और सुदक्षिण को छब्‍बीस बाणों से आहत करके क्षत्रदेव को भल्‍ल से घायलकर रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया। (56)
  • युधामन्यु को चौसठ तथा सात्‍यकि को तीस बाणों से घायल करके सुवर्णमय रथ वाले द्रोणाचार्य राजा युधिष्ठिर की ओर दौड़े। (57)
  • तब राजाओं में श्रेष्‍ठ युधिष्ठिर गुरु के निकट से तीव्रगामी अश्वों द्वारा शीघ्र ही दूर चले गये और पांचाल देश का एक राजकुमार द्रोण का सामना करने के लिये आगे बढ़ आया। (58)
  • परंतु द्रोण ने धनुष, घोड़े और सारथि सहित उसे क्षत-विक्षत कर दिया। उनके द्वारा मारा गया वह राजकुमार आकाश से उल्‍का की भाँति रथ से भूमि पर गिर पड़ा। (59)
  • पांचालों का यश बढ़ाने वाले उस राजकुमार के मारे जाने पर वहाँ 'द्रोण को मार डालो, द्रोण को मार डालो' इस प्रकार महान कोलाहल होने लगा। (60)
  • इस प्रकार अत्‍यन्‍त क्रोध में भरे हुए पांचाल, मत्‍स्‍य, केकय, सृंजय और पाण्‍डव योद्धाओं को बलवान द्रोणाचार्य ने क्षोभ में डाल दिया। (61)
  • कौरवों से घिरे हुए द्रोणाचार्य ने युद्ध में सात्‍यकि, चेकितान, धृष्टद्युम्न, शिखण्‍डी, वृद्धक्षेम के पुत्र, चित्रसेन कुमार, सेनाबिन्दु तथा सुवर्चा-इन सबको तथा अन्‍य बहुत-से विभिन्‍न देशों के राजाओं को परास्‍त कर दिया। (62-63)
  • महाराज! आपके पुत्रों ने उस महासमर में विजय प्राप्‍त करके सब ओर भागते हुए पाण्‍डव-योद्धाओं को मारना आरम्‍भ किया। (64)
  • भरतनन्‍दन! इन्‍द्र के द्वारा मारे जाने वाले दानवों की भाँति महामना द्रोण की मार खाकर पांचाल, केकय और मत्‍स्‍य देश के सैनिक काँपने लगे। (65)
इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में द्रोणाचार्य का युद्धविषयक इक्‍कीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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